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________________ ९ आकाश द्रव्य २११ इस प्रकार विज्ञान तथा तर्क दोनोसे सिद्ध होता है कि शब्द पुद्गलका ही कार्य है आकाशका कदापि नही। पुद्गल पदार्थमे प्रकट होनेवाला वह कम्पन वायुमण्डलमे आ जाता है क्योकि वायु सर्वत्र होनेके कारण उस पदार्थ से भी स्पर्श कर रही है । उसी वायुमण्डलका वह कम्पन हमारे कानोको प्राप्त होता है क्योकि वही वायु हमारे कानको भी स्पर्श कर रही है। अत जो शब्द हम सुनते है वह उस वायुका ही कम्पन है और कुछ नही । यदि वायु विपरीत दिशामे बह रही हो तो हमको वह शब्द सुनाई नही देता, क्योकि वह कम्पन उसके साथ उस दिशामे चला गया है और हमारे कान तक नहीं आने पाया है। यदि वायु हमारी दिशामे वह रही हो तो मीलो दूरका भी शब्द हमे सुनाई दे जाता है, क्योकि वायुका कम्पन उसके वेग तथा सचारके कारण शोघ्र ही हमारे कानोको प्राप्त हो जाता है । बादलो की तथा बिजलीकी गड़गडाहट हमे सहज सुनाई देती है, क्योकि वहाँ तक वायुमण्डल है, परन्तु सूर्यमे होनेवाले महान् विस्फोटोका शब्द हमे सुनाई नही देता। क्योकि वहांके वायुमण्डल और पृथिवीके वायुमण्डलके बीचमे बडा अन्तराल पड़ा हुआ है अर्थात् दोनो वायुमण्डलोका परस्परमे कोई सम्बन्ध नही है। उनके बीचमे केवल आकाश है। यदि शब्द आकाशका कार्य होता तो वह भी हमे अवश्य सुनाई दे जाना चाहिए था, क्योकि आकाश सर्वत्र है, वह कही नही टूटता। दूर देशस्थ शब्द हमारे कानो तक आते-आते धीरे-धीरे धीमाधीमा होता जाता है। यही कारण है कि अत्यन्त दूरपर होनेवाले शब्द यहाँ तक कि ऐटमबाम्ब के भयकर विस्फोटोका शब्द भी हमे सुनाई नही देता। इसका कारण भी वायुमण्डल ही है। वायु मण्डलमे पदार्थको रोकने की शक्ति है। एक गेंदको ज़ोरसे आकाशमें फेंक देनेपर उसकी गति बराबर धीरे-धीरे कम होती
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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