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________________ २१० पदार्थ विज्ञान ग्रहणको प्राप्त नही होता । पृथिवी आदि बडे पदार्थ तथा पर्वत, अथवा ईंट-पत्थर आदि छोटे पदार्थ ही परस्परमे टकराकर भग्न हो जाते हैं, आकाश भग्न नही होता । तलरवारसे पुद्गल अथवा पुद्गलसे बनी भौतिक देह हो काटी जा सकती है, आकाश नही कटता । जल, सागर तथा नदियोसे पृथिवी भीगती है पर आकाश नही भीगता । वर्षासे भी वायुमण्डल ही भीगता है आकाश नही भीगता | अग्निसे पौद्गलिक ईंधन ही जलता है आकाश नही जलता । वायुसे पुद्गल जो घास-फूस, पत्ते अथवा बड़े-बड़े पर्वत हैं चेही उखडते हैं या सागर ही क्षुभित होता है, पर आकाश न उखड़ता है और न क्षुभित होता है। आंधी तूफान, धूल, धूम आदिसे वायुमण्डल हो मलिन तथा अपवित्र होता है और वर्षा से वही स्वच्छ तथा निर्मल होता है, परन्तु आकाश तो सर्वदा स्वच्छ तथा निर्मल ही है । वह मलिन नही होता, न नया स्वच्छ होता है । इस प्रकार आकाश सर्व प्रकारसे निर्लेप है । ५. शब्द श्राकाशका गुण नहीं ऐसे निर्लेप पदार्थ मे शब्द प्रकट हो सकें यह असम्भव है । यह दृष्टिकी स्थूलता है, भ्रम है कि किन्ही लोगोको शब्द आकाशका गुण मालूम होता है । आकाश तो अमूर्तिक तथा निर्लेप है, सदा स्थिर है | तनिक-सा भी कम्पन उसमे सम्भव नही, और शब्द साक्षात् कम्पन-स्वरूप है । विज्ञान भी इसे पुद्गल पदार्थका कम्पन - मात्र कहता है । किसी बजते हुए घण्टेपर हाथ रखकर देखो तो साक्षात् रूपसे आपको वह झनझनाहटके रूपमे कपिता हुआ प्रतीत होगा । जबतक यह कम्पन चल रहा है, तभी तक आपको शब्द सुनाई दे रहा है । परन्तु यदि उस घण्टेको हाथसे पकड़ लिया जाये तो उसका कम्पन रुक जाता है और आवाज या उसकी गुंजार भी चन्द हो जाती है ।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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