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________________ आकाश द्रब्य १ आकाश अमूर्तिक है, २ आकाश व्यापक है, आकाश नित्य है, ४ आकाग निर्लेप है, ५ शब्द आकाशका गुण नही, ६ लोकालोक-विभाग, ७ लोकका आकार तथा विभाग, ८ आकाशके प्रदेश, ९ लोकका माप, १० वडा पदार्थ थोडेमें कने समाये, ११ आकाश द्रव्यकी मिद्धि, १२ व्योममण्डलकी विचित्रता, १३ अवगाहनत्व गुण, १४ आकाशका स्वभाव-चतुष्टय; १५ आकाश द्रव्यको जाननेका प्रयोजन । १ प्रकाश प्रतिक है अहो । गुरु जनोकी व्यापक दृष्टि | जिन्होने बैठे-बैठे ही मानो समस्त विश्वको पी लिया है। ज्ञानकी महिमा ही ऐसी है। हम सभीका ज्ञान भी स्वभावसे ऐसा ही है। परन्तु उसे हमने अपने हाथो ही अन्धकारमे डाल रखा है। हम जड जगत्के दृश्य प्रपंचोमें उलझकर उसकी महिमा आकते है, पर ज्ञानको व्यापकताको देख नही पाते। वह आकाशवत् व्यापक है। अजीव अर्थात् पुद्गल पदार्थका वर्णन कर चुकनेपर अव आकाश द्रव्यका वर्णन करते हैं। साधारणतः यह जो ऊपर नीला-नीला दिखता है इसे आकाश कहा जाता है, परन्तु वास्तवमे ऐसा नहीं है। वह तो इन्द्रियोसे दिखाई देता है, अत अवश्य ही पुद्गल होना चाहिए। आकाश अतिक है, इन्द्रियोसे जाना नहीं जा सकता। न छूकर जाना जा सकता है, न चखकर, न सूघकर, न देखकर, न सूनकर । इस खाली आकाशमे जो सर्दी-गर्मी-सी प्रतीत होती है वह वायुकी है
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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