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________________ १८२ पदार्य विज्ञान सब दृष्ट पदार्थ जीवके छह कायोमे समा जाते हैं । ४ पचभूत तथा उनके कार्य सर्व जीव-कायोको संग्रह करके देखें तो पचभूतोमे समा जाते हैं । पृथ्वी, जल अग्नि, वायु एव आकाश ये पांच भूत कहलाते हैं। इनमे से पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, ये चार ही मूल पुद्गल है। आकाशकी गणना वैदिक दर्शनकार भूतोमे करते हैं परन्तु जैनदर्शनकार इसे पृथक् प्रकारका पदार्थ मानते हैं। इसका कथन बादमे किया जायेगा। षट्कायिक जीवके समस्त पूर्वोक्त शरीरोका निर्माण इन पांच भूतो के सघात अर्थात् मेलसे होता है । यद्यपि षटकायके जीवोमे इन चारके अतिरिक्त वनस्पति तथा त्रसको भी गिनाया गया है। परन्तु वह केवल शरीरोकी विभिन्न जातियोका दिग्दर्शन करानेके लिए है, जब कि यहाँ प्रकरण कुछ और है। यहाँ उन मूल पुद्गल पदार्थोंका विचार करना इष्ट है जिनमे से कि वे छह काय बने है, जो कि जीवित या मृत रूपमे इस विचित्र विश्वके प्राण हैं। उन छहमे-पृथिवी, जल, अग्नि तथा वायु ये चारो तो मूलभूत काय हैं और शेष दो जो वनस्पति तथा प्रेस काय हैं वे इनके ही संघात या मेलसे बने हैं। अतः यहा हमे पहले यह समझना चाहिए कि पृथिवी आदि इन चार मूल पदार्थोंका व्यापक रूप क्या है। मिट्टी, पत्थर, सोना, चाँदी, लोहा, ताम्वा, कोयला आदि खनिज पदार्थोंको पृथिवी कहते हैं। जल, अग्नि व वायु सर्व-परिचित हैं। अन्य प्रकारसे कहे तो पृथिवी ठोस होती है, जल तरल अर्थात् बहनेवाला होता है, अग्नि तेजवाली होती. है और वायु स्वतन्त्र सचार करनेवाली। आकाश खाली स्थान-' रूप होता है। इन पाँचके मेल से ही वनस्पति तथा त्रस शरीर कैसे बनते हैं सो बताता हूँ।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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