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________________ ८ पुद्गल-पदार्थ १८१ नही बल्कि उसके काय या शरीरके है । छह जातिके शरीर लोकमे प्रसिद्ध हैं। ये छह जातिके शरीर जब तक जीवित रहते हैं तब तक जीवके शरीर या जीव कहलाते हैं और मर जानेके पश्चात् ये ही अजीव पुद्गल पदार्थ बन जाते हैं। ज़रा दृष्टि घुमाकर देखिए कि जो कुछ भी यहाँ दृष्ट है उसमे कौन-सी वस्तु ऐसी है जो जोवका शरीर न हो या कभी पहले जीवका शरीर न रह चुका हो । इंट, पत्थर, रत्न, हीरा, सोना, चांदी, लोहा, ताम्बा आदि पदार्थ, तथा इनसे बने हुए महल, मकान, बर्तन आदि सब वास्तवमे पृथिवीकाय हैं, अथवा पृथिवीकायिक जीवोंके जीवित या मृत शरीर हैं, क्योकि ये पृथ्वीमे उत्पन्न होनेवाले हैं और वहाँ जीवके शरीर रूपमे रहकर वृद्धि पानेवाले खनिज पदार्थ हैं। इसी प्रकार जल, वर्षा, ओस आदि तथा उससे बननेवाले वाष्प बर्फ आदि पदार्थ जलकायके जीव हैं अथवा जलकायिक जीवके जीवित या मृत शरीर हैं। अग्नि, अंगार, चिनगारी, साक्षात् अग्निकायकेजीव हैं अथवा अग्निकायिक जीवके जीवित शरीर हैं। और वायु, गैस आदि वायुकायके जीव हैं अथवा वायुकायिक जीवके जीवित या मृत शरीर है। घास, फूल, फल तथा उनसे बने हुए स्वादिष्ट पदार्थ, लकडी तथा उससे बने हुए कुरसी मेज़ आदि, वस्त्र आदि सब वनस्पति कायके जीव या वनस्पति कायिक जीवोंके मृत शरीर हैं । फर्नीचर वनस्पतिकी लकडीका रूपान्तर है, वस्त्र रूईका रूपान्तर है। इसी प्रकार चलने-फिरनेवाले कीडोसे लेकर मनुष्यो पर्यन्तके ये सब छोटे बडे शरीर तथा उनमेसे निकले हुए चमडा, हड्डी, हाथीदांत व सीगके खिलौने, मासाहारियोका भोज्य, रेशमी तथा ऊनी कपडे, दूध आदि सब असकायके जीव अथवा उनके जीवित या मृत शरीर हैं। इनके अतिरिक्त और रह क्या गया ?
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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