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________________ १७४ पदार्थ विज्ञान २६ जीव-विज्ञान जाननेका प्रयोजन चेतन, अन्तःकरण तथा शरीर इनके पृथक-पृथक् धर्म जान लेनेपर हमे विवेक करना चाहिए कि इन तीनोमे-से हम या हमारे कामका कौन-सा पदार्थ है । उसीका हमारे लिए महत्त्व तथा मूल्य होना चाहिए, अन्यका नही। वह पदार्थ क्योकि चेतन है अतः वही हम हैं और उसीका हमारी दृष्टिमे मूल्य होना चाहिए। अन्त करण यद्यपि चेतन सरीखा दीखता है, परन्तु वास्तवमे वह चेतन नही है, इसलिए उसका तथा उसके धर्मोंका भी हमारी दृष्टिमे कोई महत्त्व नही होना चाहिए। शरीर तो है ही जड अत इसका कोई मूल्य नहीं है। ___अन्त.करण तथा शरीरके बन्धन चेतनके लिए क्लेशकारी हैं, अत जिस प्रकार भी चेतनकी प्राप्ति हो अर्थात् वह इन दोनों के बन्धनसे छूटे, वही कुछ करना मेरा परम तथा सर्वप्रमुख कर्तव्य है, वही धर्म है। यही अध्यात्मका उपदेश है। फिर भी जबतक गृहस्थ जीवनमे रहता हूँ तबतक शरीर तथा शरोरके भोगोका मूल्य गिनकर धन आदिमे अत्यन्त गृद्ध तथा स्वार्थी बनना मेरे लिए योग्य नही है। अपनेको तथा अन्य सभी प्राणियोके चेतनको जिससे शान्ति मिले वही कार्य करना मानवीय तथा सामाजिक कर्तव्य है, वही धर्म है। यही अध्यात्मका उपदेश है।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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