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________________ ६ जीवके धर्म तथा गुण कर देते है, उसे अन्धकार पूर्ण कर देते हैं, उसके मधुर जीवनको कडुआ या कमायला कर देते हैं इसलिए कषाय कहलाते हैं । 5 २३. आवरण तथा विकार जीवके गुणो तथा भावोमे दो बातें प्रमुखत. देखी जाती हैआवरण तथा विकार । 'आवरण' पर्देका नाम है और 'विकार' विगडने का नाम है | सूर्यके आगे आनेवाले बादल सूर्यको ढक देते है, इसलिए उन्हे सूर्यका आवरण कहा जाता है । बासी होनेपर जब भोजन सड़ जाता है, विगड़ जाता है, तब वह लाभकी बजाय हानिकारक हो जाता है । इस प्रकार विपरीत हो जानेका नाम विकार है । आवरणसे केवल पदार्थ ढका जाता है पर बिगडता नही । आवरण से उस पदार्थका प्रकाश केवल घुंधला हो जाता है, परन्तु विकारसे वह पदार्थ विपरीत हो जाता है । विकारको विक्षेप भी कहते हैं । १६५ जोवमे बताये गये लौकिक ज्ञान, लौकिक दर्शन और लौकिक वीर्यं ये तीनो आवरण सहित अर्थात् ढके हुए है, इसलिए ये घुँधले हो गये हैं अर्थात् इनकी शक्ति कम हो गयी है । परन्तु लौकिक सुख, दुःख, अनुभव, श्रद्धा, रुचि तथा कषाय ये सब विकारी भाव हैं, क्योकि चेतनका जो वास्तविक ज्ञान-प्रकाशी आनन्दमय स्वभाव है, जिसके कारण कि उसकी सुन्दरता है, निर्मलता व स्वच्छता है, उस स्वभावको इन भावोने विपरीत कर दिया है । उसके स्वतन्त्र शान्त आनन्दको विषयोंके आधीन करके परतन्त्र, अशान्त तथा व्याकुल बना दिया है । ज्ञानादिके आवरणोने केवल उसकी ज्ञानशक्तिको कम कर दिया पर उसे विपरीत नही किया अर्थात् ज्ञानको अज्ञान नही बनाया । परन्तु कषायो आदिके रूपवाले विकारोंने उसके स्वभावको विपरीत कर दिया है । आवरण तथा विकार इन
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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