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________________ १६४ पदार्थ विज्ञान नष्ट हो जानेपर सोचना-विचारना शोक है। अनिष्टतामोसे डरनेका नाम भय है। ग्लानि व घृणाका भाव जुगुप्सा है। पुरुषके साथ रमण करनेका जो भाव होता है वह स्त्रीवेद है । स्त्रीके साथ रमण करनेका जो भाव होता है वह पुरुषवेद है। और स्त्री तथा पुरुष दोनोके साथ रमण करनेका जो भाव होता है वह नपुसकवेद है जो नपुसकोमे ही पाया जाता है। इस प्रकार कषायका कुटुम्ब बहुत बड़ा है । इच्छा, वासना, तृष्णा, काम, क्रोध, मान, माया, लोभ, स्वार्थ, अहकार, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुसकवेद आदि सब कषाय हैं । सबका नाम गिनाना असम्भव है। इसलिए सब कषायोके प्रतिनिधिके रूपमे राग तथा द्वेष ये दो ही यत्र-तत्र प्रयोग करनेमे आते हैं । इन दोनोका पेट बहुत बड़ा है। इन दोनोमे जगत्की सर्व कषायें समावेश पा जाती हैं। इष्ट अर्थात् अच्छे लगनेवाले विषयके प्रति प्राप्तिका भाव राग कहलाता है और अनिष्ट पदार्थसे बचकर रहना या उसे दूर हटानेका भाव द्वेष कहलाता है। इष्टकी प्राप्तिका तथा अनिष्टसे बचनेका, इन दोनो भावो के अतिरिक्त तीसरा भाव जीवमे पाया नहीं जाता। सभी चाहते हैं कि जो हमे अच्छा लगे वह तो हमे मिले और जो बुरा लगे वह न मिले। बस यही राग-द्वेष है । __ सभी कषाय राग और द्वेषमे गभित की जा सकती हैं। जैसेइच्छा, वासना, तष्णा, काम, मान, लोभ, स्वार्थ, अहकार, रति, हास्य और तीनो वेद राग हैं क्योकि इन सभीमे इष्ट पदार्थकी प्राप्तिका भाव बना रहता है। इसी प्रकार क्रोध, माया, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा आदि द्वेष हैं, क्योकि इनमे अनिष्ट पदार्थके प्रति हटावकाभाव बना रहता है । अतः राग व द्वेष ये दोंनो शब्द व्यापक अर्थमे प्रयोग किये जाते हैं। क्योकि ये सब भाव जीवको मलिन
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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