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________________ 4/ पदार्थ विज्ञान १४० २. जीव सामान्यके धर्म तथा गुण गुण, स्वभाव व धर्म ये एकार्थवाची शब्द है । इसलिए धर्म कहो या गुण कहो एक ही बात है । यद्यपि चेतन तथा अन्त. करणके पृथक्-पृथक् गुण बताये जाने चाहिए, परन्तु उनका भेद अत्यन्त सूक्ष्म होनेके कारण अभी आप उसे समझ न सकेंगे । इसलिए पहले चेतन तथा अन्त करणका मिश्रण जो यह जीव पदार्थ है इसके गुण बताता हूँ । उनके पृथक्-पृथक् गुण पीछे बताऊँगा जब कि आप इस स्थूल तत्त्वको ठीक प्रकारसे समझ चुकेंगे 1 जीव पदार्थमे वैसे तो अनन्तो गुण तथा शक्तियाँ या विशेषताएँ है, जिनमे से सबका कहा जाना असम्भव है । हां कुछ प्रमुख गुणोका परिचय देना यहाँ पर्याप्त है । जीवके चार प्रमुख गुण आगममे कहे गये है-ज्ञान, दर्शन, सुख व वीर्यं । इन चारो गुणोकी चौकडीका नाम अनन्त चतुष्टय है । ये कुछ ऐसे विशेष लक्षण है, जिनपर से आबाल - गोपाल इसको जान सकते हैं, क्योकि ये चारो सबके प्रत्यक्ष हैं । इनके अतिरिक्त भी जीवमें अनेक गुण हैं, जिनमे अनुभव, रुचि, श्रद्धा, सकोच - विस्तार विशेष वर्णनीय हैं । ३ ज्ञान ज्ञान कहते हैं जाननेको । क्या बच्चा और क्या बड़ा सभी कुछ न कुछ जानते है, इन्द्रियोंसे जानें या मनसे । परन्तु साधारणत. ऐसा भ्रम पडा हुआ है कि इन्द्रियाँ ही जानती है अर्थात् आँख ही देखती है, कान ही सुनते है, नाक ही सूँघती है । परन्तु वास्तवमे ऐसा नही है । ये इन्द्रियां या मन जाननेके साधन तो अवश्य हैं, परन्तु स्वय जाननेवाले आँखोंके लिए देखनेका साधन तो सकता । इस बातकी परीक्षा तब नही हैं। अवश्य है होती है जिस प्रकार चश्मा पर स्वय नही देख जब कि मृत्यु हो
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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