SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३९ ६ जीवके धर्म तथा गुण चेतन तत्त्व अत्यन्त गुप्त है, अतः उसको पढ़नेके लिए जीवपदार्थको पढनेका प्रयत्न करें। जीव-पदार्थपर-से ही चेतन तत्त्वको जाना जा सकता है, क्योकि जैसा कि पहले बताया गया है जीवपदार्थ ही चेतन तत्त्व है, जीव ही परब्रह्म परमेश्वर तथा प्रभु है, यदि शरीर तथा अन्तःकरणसे मुक्त हो जाये तो। आप स्वय जोव है, अतः आप भी स्वय प्रभु बन सकते हैं या परमानन्दको प्राप्त कर सकते हैं, यदि शरीर तथा अन्तःकरणसे मुक्त हो जायें तो। परन्तु यह तभी सम्भव है जब कि आप जीव, शरीर तथा अन्तःकरण इन तीनोको ठीक-ठीक जान सकें। ससारी-जीव शरीर, अन्तःकरण तथा चेतना इन तीन पदार्थोसे मिलकर बना है। इसलिए तीनोको पृथक्-पृथक् पहचाननेकी आवश्यकता है। जबतक शरीर ही गरीर को जानते रहेगे तबतक आपके लिए शरीर ही जीव या चेतन पदार्थ बना रहेगा। किसी भी पदार्थको जान लेनेके लिए उसके गुण तथा उसकी विशेषताएँ जानी व जनायी जाती है, क्योकि जैसा कि पहले बताया गया है, पदार्थ गुणोका समुदाय है। उन गुणो या विशेषताओपर-से हम उस पदार्थको अच्छी तरह पहचान सकते है। अत. जीव, अन्त.करण तथा शरीर इन तीनोके पृथक्-पृथक् क्या गुण या विशेष. ताएँ है यह जानना अत्यावश्यक है । ये तीनो पृथक्-पृथक् पदार्थ हैं, यह बात पहले बतायी जा चुकी है। जीव चेतन है, शरीर जड है और अन्त करण इन दोनोके मध्यवर्ती एक विचित्र पदार्थ है जिसने इन दोनोको मिलाकर एकमेक कर रखा है, और यह जानने नही देता कि इनमे क्या भेद है। ज्ञानीजन ही किसी विशेष अन्तर्चक्षु द्वारा इस रहस्यको जान पाते हैं। उसो रहस्यका कुछ परिचय देते हैं। तनिक विचार व मनन द्वारा अपने अन्दरमे खोजकर उसे जानने तथा उसकी सत्यता का निर्णय करनेका प्रयत्न कीजिए।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy