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________________ १३२ पदार्य विज्ञान और इस प्रकार केवल आध-पौन घण्टेके भीतर हो उस पदार्थ या स्थानमे असख्यातो इकट्ठे हो जाते है। उत्पत्तिकी चरम सीमाको स्पर्श करनेके पश्चात् अब वे अपनी-अपनी आयु पूरी करके क्रमपूर्वक मरने भा लगते हैं और उत्पत्तिकी तीव्र गति भी कुछ मन्द पड़ जाती है। फलत तत्पश्चात् उनकी संख्या उम पदार्थमे वरावर उतनी की उतनी ही बनी रहती है । यदि किसी पदार्थमे पर्याप्त वायु न मिल पावे या किती यन्त्र द्वारा उसकी वायु खेंच ली जावे तो वहां ये जीव उत्पन्न नहीं होते। इसी प्रकार यदि नमी न मिले या पदार्थको सुखाकर नमी दूर कर दी जावे तो भी ये उत्पन्न नही हो सकते । पदार्थको गर्म करके उसका तापमान बहुत अधिक बढा दिया जाये या उसे रेफ्रीजिरेटर आदि साधनोंसे ठण्डा करके उसका तापमान बहुत अधिक घटा दिया जाये तो भी ये उत्पन्न नहीं हो सकते। अथवा किसी पदार्थको धोकर या रगड़कर या अन्य किसी औषधि मादिके द्वारा इतना साफ कर दिया जाये कि उसमे मैल आदि न रहने पावे तो भी ये उत्पन्न नही हो सकते, क्योकि पदार्थोंमे रहनेवाला यह मैल उनका भक्ष्य है। १७. जीवोका स्वभाव-चतुष्टय पदार्थ-सामान्य नामक अधिकारमे पदार्थके सम्बन्धमे चार प्रकार से विश्लेषण करके बताया गया है । इन चार बातोका विचार करनेपर किसी भी पदार्थका विशद परिचय प्राप्तहो जाता है। वे चार बातें हैं-द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव। इसे ही पदार्थके स्वभाव-चतुष्टय कहते हैं। ये चारो ही बातें सामान्य तथा विशेष दो प्रकारसे विचारी जाती हैं। द्रव्य उसे कहते हैं जो कि भाव या गुणोको धारण करे इसलिए वह कुछ प्रदेशो तथा आकारोवाला होता है,
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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