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________________ ५ जीव पदार्थ विशेष १२७ उपपादज जन्म देव तथा नारकियोका होता है, जो हमारे प्रत्यक्ष नहीं है। आगम हमे बताता है कि वे लोग विना मातपिताके स्वय ही अपने योग्य स्थानमे पैदा हो जाते है और आधपौन घण्टेके भीतर हो भीतर पूरे यौवनको पाप्त हो जाते हैं । ___इस पृथिवीपर हमारे नित्य देखनेमे आनेवाले दी ही भेद हैसम्मूच्छिम व गर्भज । यद्यपि विकलेन्द्रिय सम्मूच्छिम जीव चीटी, मक्खी आदिकोके भी अण्डे होते है, परन्तु वे माता-पिताके सयोगसे माताके गर्भाशयमे उत्पन्न नहीं होते, बल्कि उन प्राणियोके रहनेके स्थानोमे, उनके शारीरिक मेल, मिट्टी तथा जलके संयोगसे स्वत: बाहरमें उत्पन्न हो जाते हैं और वहां हो वृद्धि पाते रहते है। कुछ दिन पश्चात् अण्डे बडे हो जानेपर जीव उन्हे तोडकर उनमेसे बाहर निकल आते हैं। यद्यपि मक्खी आदि किन्ही जीवोमे माता-पिताका सयोग या मैथुन भी देखा जाता है, परन्तु फिर भी उनके अण्डे माताके गर्भाशयमे उत्पन्न नहीं होते, बल्कि उनके मल मूत्र आदिका सयोग पाकर बाहरकी मिट्टी आदिमे ही उत्पन्न होते हैं, इसलिए मैथुन होते हुए भी उन्हे गर्भज नही कह सकते। सूक्ष्म दृष्टिसे देखनेपर सम्मूच्छिम जीव भी गर्भजकी भाँति रज तथा वीर्यके मिलनेसे ही उत्पन्न होते हैं। जैसे कि वृक्षका बीज तो गर्भाशय तथा रजके स्थानपर है, पृथिवी योनि है और जल वीर्यके स्थानपर है। इसी प्रकार चीटी आदिके रहनेके स्थानका गुप्तस्थान बिल आदि योनि है, उनके शरीरका मैल रज है और मिट्टी, जल आदि वीर्य हैं। परन्तु यहाँ केवल माताके गर्भाशयकी अपेक्षा होनेके कारण उन्हे गर्भज न कहकर सम्मूच्छिम । कहा जाता है। कुछ जीव गुप्त या ढके हुए योनिस्थानमे उत्पन्न होते है, कुछ खुले वायु मण्डलमे उत्पन्न होते हैं और कुछ आधे खुले व आधे
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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