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________________ २०८ पदाथ विज्ञान हैं। इन लोगोके शरीर अत्यन्त सुन्दर तथा वेक्रियिक होते हैं, जिसके कारण ये अनेको सुन्दर-सुन्दर तथा मनभावने रूप धारण कर लेते हैं । इन लोगोका स्वभाव अत्यन्त मृदुल होता है। वे सदा प्रसन्नचित्त रहते हैं। यद्यपि उनमे भी बडे व छोटे दर्जे होते हैं परन्तु सब सुखी होते हैं। उनके राजाका नाम इन्द्र है, जिसका वैभव अतुल होता है। उनकी आवश्यकताएँ यद्यपि अल्प होती है परन्तु उनके पास भोग सामग्री अधिक होती है। देवोके रहनेके घरोको विमान कहते है। एकके ऊपर एक करके यह स्वर्गलोक १९ भागोमे विभक्त हैं । पहले सोलह भाग कल्पके नामसे प्रसिद्ध हैं। १७वें भागको गैवेयक कहते हैं, जो स्वय नौ भागोमे विभाजित है, और इसलिए इसे नवग्रेवेयक कहते है। अठारहवां भाग अनुदिश कहलाता है, जिसमे देवोके रहने योग्य नौ स्थान या विमान हैं। उन्नीसवें भागको अनुत्तर कहते हैं जिसमे पाँच विमान हैं। १६ स्वर्गोंमे ऊपर - ऊपरके स्वर्गोमे आवश्यकताएं कम कम होनेके कारण सुख अधिकअधिक है। यहां तक राजा-प्रजाकी कल्पना रहती है, इसलिए इन्हे कल्प कहते हैं । इन स्वर्गोंके पृथक्-पृथक् इन्द्र भी होते हैं। परन्तु इससे ऊपरके तीन भागोमे राजा प्रजाका भेद नही है, इसलिए उन्हे कल्पातीत कहते है। वहाँ कोई इन्द्र नही होता या यो कह लोजिए कि वहाके रहनेवाले सभी अपने-अपने इन्द्र हैं। इसलिए वहाँके रहनेवालोको अहमिन्द्र कहते हैं । इन भागोमे भी ऊपर-ऊपर जानेपर आवश्यकताएं घटती जाती है और सुख बढता जाता है। सबसे ऊपरवाले अनुत्तर स्वर्गके पांच विमानोमे बीचवाले विमानका नाम सर्वाथसिद्धि है। स्वर्गमे यह सबसे उत्तम स्वर्ग माना जाता है । क्योकि यहाँ रहनेवाले देव अत्यन्त तृप्त तथा सन्तुष्ट होते है । स्वर्गलोकमे रहनेवाले देवोको स्वर्गवासी, विमानवासी या कल्पवासी देव कहा जाता है।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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