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________________ ५ जीव पदार्थ विशेष १०७ देनेके लिए बना लिया करते हैं । उन लोगोकी आकृति अत्यन्त कुटिल तथा क्रूर हुआ करती है । उन्हे सदा मार-काट ही भाती है वे एक क्षण भी खाली नही बैठते, सदा मरते-मराते तथा काटतेकटाते ही रहते हैं । उनके शरीरकी विशेषताके कारण मर कटकर भी वे मरते-करते नही, क्योकि जिस प्रकार पारा बिखरकर पुन. मिल जाता है उसी प्रकार कट-कटकर भी उनका शरीर पुनः मिल जाता है । इसलिए जितनी आयु लेकर वे जाते हैं उतने काल तक दुख भोगते हुए वहाँ जीवित ही रहते हैं, मरते नही है। शरीरकी विशेषताके कारण आत्महत्या के द्वारा भी उस दुखसे पिण्ड नही छुड़ा सकते । वे लोग परस्परमे एक दूसरेको पकडकर कभी करोतसे चीर डालते हैं, कभी उन्हे अग्निमे झोक देते हैं, कभी उबलते तेल के कड़ाहेमे डाल देते हैं, कभी कोल्हूमे पेर देते है, कभी गर्म करके लाल किये गये लोहेके स्तम्भके साथ चिपटा देते हैं, कभी उनका मुख सडासियोसे फाडकर उन्हे अग्नि द्वारा गलाया हुआ ताँबा पिला देते हैं, कभी उन्हे कँटीले वृक्षोपर चढाकर घसीट लेते हैं, जिससे उनका शरीर विदीर्ण हो जाता है- इत्यादि अनेक प्रकार से दुख देते रहते हैं । उन्हे सदा वैर विरोधकी बातें ही याद आती हैं । इस प्रकार नरक गतिके जीव प्रचुर दुख भोगते हुए नरक लोकमे निवास करते है । पूर्वं भवोमे अत्यन्त पाप कर्म करनेवाले व्यक्ति ही यहां जन्म लेते है । इन लोगोकी आयु भी बहुत लम्बी अर्थात् लाखो-करोड़ो वर्षों की होती है । इतने काल तक वे बराबर अपने पाप कर्मों का फल भोगते रहते हैं । देवगतिमे नरकगति से बिल्कुल उलटी व्यवस्था है । देवलोकको स्वर्ग, बहिश्त या Heaven कहते हैं । यहाँ सर्व ही बातें अत्यन्त सुहावनी, सुन्दर व तृप्तिकर होती हैं । सर्व प्रकारके विषयभोगकी सामग्री तथा सुन्दर-सुन्दर स्त्रियां भी यहाँ अति सुलभ
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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