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________________ १४. उपशम आदि १. भूमिका; २. उपशम; ३. क्षयोपशम; ४. क्षय; ५. पंच भाव; ६.संवर निर्जरा। १. भूमिका कर्मोत्पत्ति की स्वाभाविक व्यवस्था, जीव कर्म सम्बन्ध, कर्मों का बन्ध, उदय, सत्त्व, संक्रमण, अपकर्षण तथा उत्कर्षण बता देने के पश्चात् अब तत्सम्बन्धी अन्य प्रमुख अंगों का भी परिचय देना युक्त है। मोक्षमार्ग के साधनभूत तीन प्रमुख अंग या करण और हैं-उपशम, क्षयोपशम तथा क्षय। उनका संक्षिप्त कथन करने के लिये यह अधिकार प्रारम्भ किया जाता है।। यद्यपि अनादि काल से जीव तथ कर्म-बन्ध का अटूट सन्तान चक्र बराबर चला . आ रहा है, और लगभग सभी संसारी जीव इसमें उलझे हए हैं, व्याकुलता में बराबर घुलते रहते हैं, मरते रहते हैं और जीते रहते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि उनके चंगुल से जीव को पीछा छुड़ाना नितान्त असम्भव हो । अनन्तों व्यक्ति इनसे छुटकारा पाकर परमधाम को प्राप्त हो चुके हैं, कुछ अब भी किन्हीं विशेष स्थलों पर हो रहे हैं, और आगे भी होते रहेंगे। एक बार इनसे छूटने के पश्चात् जीव पूर्णत: शुद्ध तथा असंपृक्त अमूर्तीक स्वभाव को प्राप्त हो जाता है। फिर तद्देशस्थ भी कार्मण वर्गणायें, आकाश में संचरित वायु की भाँति अथवा कमल पत्र पर पड़े जल की भाँति उसको स्पर्श नहीं कर पातीं। वह सदा के लिये मुक्त रहता हुआ अत्यन्त अतीन्द्रिय सुख-सुधा सागर में निमग्न रहता है । बाह्य जगत् के प्रति उसे समता रहती है और आभ्यान्तर जगत में शमता। इस अवस्था की प्राप्ति के लिये उसे साधना करनी होती है जिसका उल्लेख आगे किया जायेगा। इस साधना के फलस्वरूप सत्तागत कर्म-प्रकृतियों में संक्रमण, अपकर्षण तथा उत्कर्षण होता रहता है जिसका उल्लेख किया जा चुका है । अत्यन्त वृद्धिंगत हो जाने पर संक्रमण, उत्कर्षण तथा अपकर्षण, उपशम क्षयोपशम तथा क्षय का रूप धारण कर लेते हैं। इन तीनों का पृथक्-पृथक् स्वरूप दर्शाता हूँ। २. उपशम-उपशम का अर्थ है कुछ देर के लिये शान्त हो जाना। जिस प्रकार मलिन जल को कुछ देर तक निश्चल रख देने पर उसका मैल बर्तन की तली में बैठ जाता है और उसके ऊपर वाला जल सर्वथा निर्मल तथा शुद्ध हो जाता है; इसी 'प्रकार कुछ काल पर्यन्त निश्चल रूप से साधना करने पर कर्म-मल कुछ देर के लिये नीचे बैठ जाता है अर्थात् अचेत होकर फलदान से विरत हो जाता है । जितने काल तक वह इस अचेत अवस्था में नीचे बैठा रहता है उतने काल तक जीव के परिणाम पूर्णतया निर्मल तथा शुद्ध हो जाते हैं। जिस प्रकार बर्तन के हिल जाने पर नीचे बैठा
SR No.009554
Book TitleKarma Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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