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________________ कर्म सिद्धान्त ७. कारण कार्य सम्बन्ध द्वारा उपरोक्त प्रतीति की सत्यता का विश्वास भी उसे हो जाता है । इन सब विज्ञानों तथा दृष्टान्तों का आधार वास्तव में वह मन है जो यद्यपि सक्ष्म होने के कारण अदष्ट है, तदपि जिसमें बाहर के जड़ पदार्थों को प्रभावित करने की एक विचित्र सामर्थ्य है। इस पर से जाना जाता है कि जीव के अमूर्तीक भावों में, बाह्य जड़ पदार्थों पर अथवा अन्य जीव के अमूर्तीक भावों पर निमित्त रूप से प्रभाव डालने की सामर्थ्य अवश्य है। इसके अतिरिक्त भी जीव की इच्छा का निमित्त पाकर हाथ पाँव आदि का चालित होना तथा इच्छावान कुम्भकार के द्वारा घट पट आदि पदार्थों की उत्पत्ति का होना, जड़ तथा चेतन दोनों में परस्पर निमित्त-नैमित्तिक भाव को सिद्ध करता है । अन्य भी अनेकों दृष्टान्त उपलब्ध हैं जिन पर से कि जीव के अमूर्तीक भावों का पुद्गल के मूर्तीक भाव पर प्रभाव पड़ना सिद्ध होता है। जैसे कि भौतिक जड़ विषयों के सेवन से जीव के भावों में सुख दुःख की प्रतीति का होना, सर व असुन्दर वस्तुओं के प्रति ग्रहण व त्याग का भाव जागृत होना, इष्टानिष्ट जड़ शब्दों के श्रवण मात्र से प्रेम व क्रोधादि उत्पन्न होना, मद्यपान से पागल हो जाना अथवा क्लोरोफार्म संघने से अचेत हो जाना इत्यादि । उपरोक्त कथन पर से यह जाना जाता है कि जीव यद्यपि अमूर्तीक है तदपि मूर्तीक पदार्थों के साथ इसका निमित्त-नैमितिक सम्बन्ध अवश्य है। कर्म-सिद्धान्त का आधार जीव तथा पुद्गल का यह पारस्परिक निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध ही है जो वस्तु स्वभाव के आश्रित है, किसी ईश्वरीय व्यवस्था के आधीन नहीं। योगी सबको शान्ति प्रदान करके जीता है योगी के अन्दर शान्ति का सौम्य संवाद होता है। योगी के मुखमण्डल पर मुस्कान और आशा होती है। योगी का वर्तमान और भविष्य आशा पूर्ण होता है। योगी अपने शरीर को सेवक बनाकर ज्ञान तथा ध्यान की साधना में रत होता है और अन्त में शरीर को भी सल्लेखना महाव्रत द्वारा त्याग कर प्रकाश 'की ओर गमन कर जाता है।
SR No.009554
Book TitleKarma Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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