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________________ कर्म सिद्धान्त २. वस्तु स्वभाव में हानि वृद्धि गत क्षणिक अविभाग-प्रतिच्छेदों के संग्रह के फल हैं। भाव या अर्थ पर्याय में सर्वत्र इसी प्रकार जानना। यद्यपि अशुद्ध तथा संयोगी द्रव्यों में दोनों ही प्रकार के परिणाम देखे जाते हैं, तदपि असंयुक्त तथा शुद्ध द्रव्यों में केवल सूक्ष्म ही परिणमन होता है स्थूल नहीं। यह सूक्ष्म परिणमन भी दो प्रकार का है-सदृश्य तथा विसदृश्य । वस्तु का आकार प्रकार न बदले और अन्दर ही अन्दर सूक्ष्म परिणमन चलता रहे उसे सदृश्य परिणमन कहते हैं, जैस समान स्तर वाली छोटी तरंगों के सद्भाव में सागर का ऊपरी स्तर समतल दिखाई देता है, अथवा अन्दर में सूक्ष्म धधकन के रहते हुए भी निर्वात दीप-शिखा स्थिर दिखाई देती है। आकार प्रकार बदल जायें ऐसा परिणमन विसदृश्य होता है, जैसे कि ऊँची नीची तथा बड़ी छोटी विषम तरंगों के उदित होने पर सागर का ऊपरी स्तर भी कहीं से ऊँचा और कहीं से नीचा दिखाई देता है, अथवा वायु से प्रेरित दीप-शिखा कभी छोटी कभी मोटी, कभी ऊँची कभी नीची दिखाई देती है। शुद्ध द्रव्यों में सदृश ही परिणमन होता है और अशुद्ध द्रव्यों में विसदृश ही। इसीलिये परिणमन करते रहने पर भी शुद्ध द्रव्यों का आकार प्रकार ज्यों का त्यों बना रहता है। ये दोनों प्रकार के परिवर्तन क्षेत्र तथा भाव दोनों में होते हैं। सर्वसमभावी धर्म स्वानुभूति रसमर्म निर्द्वन्दो मनो विश्रान्ति चन्दासमशीतल शान्ति। -
SR No.009554
Book TitleKarma Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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