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________________ (५७) घरधरकर डराने लगा। इस समय स्वामीने घोर उपसर्ग जानकर सन्यास धारण किया । निदान जब वह दानव थक गया और स्वामीको न चला सका, तब अपनो माया संकोचकर स्वामीक पास क्षमा मांगकर चला गया। नव सवेरा हुआ तो नगर नरनारी समाचार सुनकर देखनेको आये और मस्तक झुकाकर स्तुति की परंतु स्वामी तो मेरुके समान अचल ध्यानमें मौन सहित तिष्ठे रहें । इस प्रकार वे विद्युतचर महामुनिराय बारह वर्ष तक तपश्चरण कर अंतमें समाधिमरण कर सर्वार्थसिद्धिमें अहमिन्द्र हुए। वहांसे चय मनुष्य जन्म ले शिवपुरको जावेंगे । और भी जिन मुनियोंने जैसा २ तप किया उसी प्रकार उत्तम गतिको प्राप्त हुए । सो इस प्रकार वे ब्राह्मणके पुत्र महामिथ्यात्वी जिन धर्मके प्रभावसे माक्ष और सर्वार्थमिद्धिको प्राप्त हुए । देखो, भवदेव ! छोटा भाई बड़े भाईका मान रखने के लिये और वे सेठकी चारों स्त्रियां जो पतिके वावले होजानेसे और पतिके द्वारा नाक कान आदि आंगोपांग छिदनेसे दुखित हो आर्यिका हो गई थीं सो भी इस जिन धर्मके प्रभावसे भवदेव तो सर्वार्थसिद्धि और वे चारों स्त्रियां छठवें स्वर्गम स्त्रीलिंग छेदकर देव हुई। और बड़े भाई भावदेव बूस्वामी होकर मोक्ष गये । देखो, जिन्होंने भय, लज्मा व मानवश भी धर्म अंगी. कार किया था वे भी नरसुरके उत्तम सुख भोगकर सदतिको प्राप्त हुए, तो जो भव्य नीव सच्चे मनसे व्रत पालें और भावना भावे उन्हें क्यों न उत्तम गति प्राप्त हो ? अर्थात् अवश्य ही हो ।
SR No.009552
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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