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________________ (५१) यह सुन स्वामीने मुदित मन होकर तुरन्त ही वस्त्रादि आभूषण उतार दिये और अपने कोमल करोंसे केशोंको घासकी तरह उखाड़ डाले, और गुरुके सन्मुख नम्र भूत हो व्रतोंकी याचना को। परम दयालु, कर्म-शत्रुओंसे छुड़ानेवाले गुरुमी कुमारको दीक्षा देकर मुनियोंके आचारका व्यौरा समझाने लगे, सो, सनकर स्वामीकी माता बिनमती और चारों स्त्रियां भी भवभोगसे विरक्त हुई और पांचोंने गुरुके समीप आर्यिकाके व्रत लिये । विद्युतचरने भी उसी समय समस्त परिग्रहका त्याग कर मुनिव्रत लिया और नगरके नरनारियोंने शक्यनुसार मुनिव्रत तथा श्रावकवत लिये । फिर राना तथा अन्यान्य गृहस्थ अपने स्थानको गये। जम्बूस्वामी तपश्चरण करने लगे। मब उपवास पूर्ण हुआ तब गुरुकी आज्ञा लेकर नगरकी ओर भिक्षाके अर्थ पधारे। सो नगरके नरनारी देखनेको उठे। कोई कहते, अरी सखी । यह चही बालक है, नो राजाका पट्टबद्ध हाथी छूटा था सो पकड़ लाया था। कोई कहे, यह वहीं कुमार है, जो रत्नचूलको बांधकर मृगांकको छुड़ाकर उसकी पुत्री श्रेणिक रानाको परणवाई थी। कोई कहे, यह वही कुंवर है जिसने व्याहके दूसरे ही दिन देवा. गना समान चारों स्त्री त्याग कर दी थी। परन्तु स्वामी तो नीची दृष्टि किये जूड़ा प्रमाण भूमि शोधते हुए चले जारहे थे, सो मिनदास सेठने पड़गाह कर नवधा भक्ति सहित आहार दिया। तक स्वामीने 'अक्षयनिधि' कह दिया, सो देवोंने वहां पंचाश्चर्य किये। इसप्रकार वे आहार लेकर वनमें गये और दिनोंदिन उपर तपकरने लगे, सो शुक्लध्यानके प्रभावसे केवलज्ञान प्राप्त हुआ।
SR No.009552
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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