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________________ (७६) चरकसंहिता-मा० टी०। . अब रोग मुक्तके लक्षणोंको कहते हैं । मन प्रसन्न होना, शरीरमें चैतन्यता : प्रतीत होना; वैद्य और ब्राह्मणोंमें भक्ति होना, रोगमें साध्यता उत्पन्न होकर शरीरमें किसी प्रकारकी पीडा या ग्लानि न होना यह आरोग्यताके लक्षण हैं । अर्थात जब मनुष्य रोगसे छूटकर आरोग्य होजाताहै तब उसके यह लक्षण होतेहैं ॥८॥ - आरोग्याइलमायुश्चसुखञ्चलभतेमहत् । इष्टांश्चाप्यपरान्भावान्पुरुषःशुभलक्षणः ॥८६॥ आरोग्य होनेसे मनुष्य वल आयु तथा महान् सुखके लाभको प्राप्त होताहै । तथा अन्य भी उत्तम २ भावोंको वह शुभलक्षण पुरुष प्राप्त होताहै ॥ ८६ ॥ . तत्रश्लोकः। उक्तंगोमयचीयेमरणारोग्यलक्षणम् । दतस्वप्नातुरोत्पातयुक्तिसिद्धिव्यपाश्रयम् ॥ ८७ ॥ यहां अध्यायके उपसंहारमें एक श्लोक है कि, इस गोमयचूर्णीय नामक अध्यायमें रोगीके मरनेके और आरोग्यताके लक्षणोंका कथन कियागयाहै तथा दूत और स्वप्न और उत्पात तथा वैद्यकी सिद्धिके आश्रित लक्षणोंक्षा कथ कियागयाहै ।। ८७॥ __भवतिचान । इतीदमुक्तंप्रकृतंयथातथातदन्ववेक्ष्यसततमिषग्विदा। तथाहिलिद्धिञ्चयशश्चशाश्वतंससिद्धकर्मालभतेधनानिच ॥८॥ इति चरकसंहितायामिन्द्रियस्थानं समाप्तम् ॥ यहां यह श्लोक है कि,इस इन्द्रियस्थानमें जो संपूर्ण तत्त्व जिसप्रकार मनुष्यकी प्रकृति और विकृतिक विषयमें वर्णन कियागयोहै । वैद्यलोगोंको यह सब जिस २ प्रकार वर्णन कियागया है उसको जानकर इन संपूर्ण लक्षणोंको देखना चाहिये । इस प्रकार करनेसे वैद्यको सिद्धि और स्वच्छ यश तथा धनकी प्राप्ति होती है और वह सिद्धकर्मा होजाताह ॥ ८८ ॥ इति श्रीमहर्षिचरकप्रणीतायुर्वेदसंहितायामिन्द्रियम्थाने टकसालनिवासिपं०रामप्रसादवैद्यो. पाध्यायविरचितप्रसादन्याख्यभाषाटीकायां गोमयचूर्णीयमिन्द्रिय नाम . द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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