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________________ 1 (८७१) · इन्द्रियस्थान - अ०-१२. विपर्य्यासेन वर्त्तन्तेस्थानेष्वन्येषुतद्विधाः ॥ ५२ ॥ नखेषुजायते पुष्पंपङ्कोदन्तेषुजायते। जटाः पक्ष्मसुजायन्तेसीमन्ताश्चापिमूर्द्धनि ॥ ५३ ॥ भेषजानिन संवृत्तिंप्राप्नुवन्तितथारुचिम् । यानिचाप्युपपद्यन्ते तेषांवीर्य्यं न सिध्यति ॥ ५४॥ नानाप्रकृतयः क्रूराविकाराविविधौषधाः ॥ ५५ ॥ शरीर के कई भागों में फडकन उत्पन्न होजाय अथवा शरीरके कई स्थान सोयेंदुए से सुन्न रहजायँ, हृदयकी गति अथवा धमनीकी गति बंद होजाय, या देह सब अंगोंका स्तंभ होकर हिलने चलनेसे बंद हो जायँ, शरीरके सब अंगों की शीतलत गरमी, नरमाई, कठोरपन यह सब विपरीतं भावको प्राप्त होज. यँ, अपने २ स्थानों गुणोंको छोड देवें । दूसरे अंगोंमें अन्य प्रकारके गुण उत्पन्न होजायें, नखपर फुल - डियेंसी पडजायें, दांतों पर कीचसा जमजाय; पलकों की जटेंसी बंधजायँ, शिर केशों में अपूर्व भौरिसी पडजायँ जिन औषधियोंको लेने जाय वह न मिलें अथवा अपना गुण न करें या उनके अनुरूप क्रिया न होसके तथा जो औषधियोंके द्वारा रा साध्य न हों ऐसे अनेक प्रकारके उपद्रव होजायँ । अथवा जिनमें अनेक प्रकारकी अलभ्य औषधियोंकी आवश्यकता पडे इस प्रकार के भयंकर और विरोधी विकार उत्पन्न होजायँ तो ऐसे लक्षणवाले रोगी प्रायः अवश्यही कालके मुखमें पडनेवालें होते हैं ॥ ५१ ॥ ५२ ॥ ५३ ॥ ५४ ॥ ६५ ॥ क्षिप्रंसमभिवर्त्तन्ते प्रतिहत्यबलौजसी शब्दः स्पर्शोरसोरूपं गन्धश्रेष्टाविचिन्तितम् ॥ ५६ ॥ उत्पद्यन्तेऽशुभान्येवप्रतिकर्मप्रवृत्तिषु । दृश्यन्तेदारुणाः स्वप्ना दौरात्म्यमुपजायते : ॥ ५७ ॥ प्रेष्याः प्रतीपतां यान्तिप्रेताकृतिरुदीर्य्यते । प्रकृतिर्हीय तेऽत्यर्थं विकृतिश्चाभिवर्द्धते ॥ ५८ ॥ रोगी के शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंध, और चेष्टा तथा अपकर्म यह सब अपनी २ शीघ्र गतिसे प्रवृत्त होजायँ जिससे रोगीका वल और मोज नष्ट होजाय । चिकित्सा करने के लिये प्रवृत्त होनेके समय अनेक प्रकारके अशुभ उपद्रव उत्पन्न होजायँ तथा खोटे दारुण स्वप्न दिखाई देनेलगें। और रोगी सबसे विनाही कारण द्वेष करने लगे aur प्रेष्य (नौकर चाकर) सब प्रतिकूल होजायें, रोगकि सब लक्षण मरेशु एकै समान होजायँ, शरीर के सब स्वभाव बिगडजायँ, वैकारिक स्वभाव उत्पन्न हो जायँ । यह सब मृत्युके ग्रास होनेवाले रोगियोंके लक्षण होते हैं ॥ ५६ ॥ ५७ ॥ ५८ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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