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________________ इन्द्रियस्थान - अ० १२. ( ८६६ ) वैद्यक बुलाने आवे तो वैद्यको उस समय उसकी चिकित्सा करनेके लिये नहीं जाना चाहिये ॥ १३ ॥ दीन भीतद्रुतत्रस्तांमलिना मसती स्त्रियम् । त्रीन्व्याकृतांश्चपण्डांश्चदूतान्विद्यान्मुमूर्षताम् ॥ १४ ॥ यदि वैद्यको बुलाने रजस्वला अथवा व्यभिचारिणी, मालन, दीन, भयभीत स्त्री अथवा तीन त्रियें मिलकर या जल्दी २ भागीहुई स्त्रियें बुलाने आयें अथवा बुलानेके लिये तीन दूत इकट्ठे होजायं, या विकृत अंगवाला दृत हो अथवा नपुंसक दूत बुलाने आवे तो वैसे दूतोंको देखकर रोगी की मृत्यु जानना चाहिये ॥ १४ ॥ अङ्गव्यसनिनंदूतलिङ्गिनंव्याधितंतथा । संप्रेक्ष्य चोग्रकर्माणनवैद्यो गन्तुमर्हति ॥ १५ ॥ यदि वैद्यको बुलाने के लिये अंगहीन अथवा कोई सन्यास आदिका चिह्न वारकिये या रोगी अथवा किसी बिकट कर्मको करनेवाला रोगीका दूत आवे तो ऐसे दूतको देखकर वैद्यको चिकित्सा करनेके लिये जाना उचित नहीं ॥ १५ ॥ आतुरार्थमनुप्राप्तंखरोष्ट्रमथवाहनम् । दूतंदृष्टाभिषग्विद्यादातुरस्यपराभवम् ॥ १६ ॥ यदि दूत वैद्यको बुलाने के लिये गधा, उंट आदि निंदित सवारियों पर चढकर आवे तो ऐसे दूतको देखकर वैद्य रोगीके मरणको जान लेवे ॥ १६ ॥ पलालबुषमांसास्थिकेशलोमनखद्विजान् । मार्जनीं मुसलंशूर्पसुपानद्भग्नविच्युते ॥१७॥ तृणकाष्ठतुषाङ्गारं स्पृशन्तोलोष्टभस्मच । तत्पूर्वदर्शने दूताव्याहरन्ति मुमूर्षताम् ॥ १८ ॥ जब रोगका दूस वैद्यको बुलाने आवे और वह आतेही पहिले पराली, तुष, मांस, हड्डी, केश, लोम, नख, दांत, झाड, मूसल, सूप ( छाज ), जूता अथवा जूतेका टूटा हुआ चमडा, घास, लकडी, किसी प्रकारके अन्नका छिलका या अंगार, मिट्टीका डलो अथवा पत्थरका स्पर्श करे या इनके ऊपर हाथ रक्खे तो ऐसे दूतकों देखतेही रोगका मरण जान लेना चाहिये ॥ १७ ॥ १८ ॥ यस्मिंश्चदूते ब्रुवतिवाक्यं मातुरसंश्रयम् । पश्येन्निमित्तमशुभंतञ्चनानुव्रजेद्भिषक् ॥ १९ ॥ ५५
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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