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________________ इन्द्रियस्थान-अ०९. (८५३) • जिस रोगीका थूक, पुरीष और वीर्य जलमें डूवजाय बुद्धिमान् उस रोगीका अंत मायाहुआ कथन करतेहैं ॥ १६ ॥ निष्ठयूतेयस्यदृश्यन्तेवर्णाबहुविधाः पृथक् । तच्चसीदत्यपःप्राप्यनसजीवितुमर्हति ॥ १७॥ जिस रोगीका थूक अलग २ अनेक वर्णीवाला दिखाई दे और जलमें डालनेसे डूबजाय वह रोगी अवश्य मृत्युको प्राप्त होता है ॥ १७ ॥ पित्तमुष्मानुगंयस्यशंखोप्राप्यविमूछति।। सरोगःशंखकोनाम्नात्रिरात्राद्धान्तिजीवितम् ॥ १८॥ जिसके पित्त ऊष्माको लेकर दोनों कनपटियोंमें प्राप्त होकर विमूच्छित होजाय उसको शंखके रोग कहतेहैं । (इस रोग कनपटिये अत्यंत चटकती हैं और उनमें अत्यंत दारुण शूल उत्पन्न होजाताहै ) इससे रोगी तीन दिनमें मरजाताहै ॥ १८॥ सफेनंरुधिरंयस्यमुहुरास्यात्प्रमुच्यते । . शूलैश्चतुयतेकुक्षिःप्रत्याख्येयःसतादृशः ॥ १९॥ • जिस रोगीके मुखसे झाग मिलाहुआ रक्त वारवार गिरे और उस रोगीकी कुखमें अत्यंत शूल होता हो उस रोगीको मरजानेवाला जानना चाहिये ॥ १९ ॥ बलमांसक्षयस्तीबोरोगवृद्धिररोचकः । यस्थातुरस्यलक्ष्यन्तेत्रीनहान्नसजीवति ॥ २०॥ जिस रोगीका बल और मांस क्षीण होगया हो और रोग सहसा बढकर तीव्र होजाय तथा अरुचि हो वह रोगी तीन दिनमें मरजाताहै ॥ २०॥ तत्रश्लोको। विज्ञानानिमनुष्याणांमरणेप्रत्युपस्थिते । भवन्त्येतानिसम्पश्येदन्यान्येवंविधानिच ॥ २१॥ तानिसणिलक्ष्यन्तेनतुसर्वाणि मानवम् । विशन्तिविनशिष्यन्तंतस्माद्बोध्यानिसर्वशः ॥ २२ ॥ इति चरकसंहितायामिन्द्रियस्थाने यस्यश्यावमिद्रियंसमाप्तम्॥९॥ यहां अध्यायके उपसंहारमें दो श्लोक हैं जब मनुष्योंका मरणसमय आजाता है उस समय ऐसे२ लक्षण उत्पन्न होते हैं तथा इसी प्रकारके और भी लक्षण उत्पन्न होतेहैं सो वैद्यको चाहिये किं इन मरणख्यापकसब प्रकारके लक्षणोंको विज्ञानपू.
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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