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________________ (८३८) चरकसंहिता-मा० टी.। । जिस मनुष्यको प्रातःकालमें ज्वर चढजायाकरें और साथ ही साथ दारुण सूखी खांसी भी होजाय और इस ज्वर तथा खांसीसे बल और मांत क्षीण होजाय तों उस मनुष्यकी मृत्यु होनेवाली है ऐसा जानना अथवा अपराहमें नित्य ज्वर उत्पन्न होताहो और कफकी खांसी अत्यंत दारुण हो तथा इसी ज्वर, खांसीसे बल औरमांस क्षीण होजायँ तो वह रोगी भी अवश्य मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ ८॥ यस्यमूत्रपुरीषञ्चग्रथितंसम्प्रवर्तते। निरुष्मिणोजठरिणःश्वसनोनसजीवति ॥९॥ जिस रोगीका मल और मूत्र गांठदार निकले और शरीरमें गर्मी बिल्कुल न रहे तथा उदररोग हो और श्वासका रोग हो वह रोगी अवश्य मृत्युको प्राप्त होताहै।९। श्वयथुयस्यकुक्षिस्थोहस्तपादंविसर्पति ।। ज्ञातिसंघससंक्लिश्यतेनरोगेणहन्यते ॥१०॥ जिस रोगीके कुक्षि (कोख ) से आरम्भ होकर संपूर्ण हाथपावापर सूजन पहुँच जाय वह सूजन उसके जातिसमूहको कष्ट देवा रोगीको नष्ट करडालताहै ॥ १० ॥ श्वयथुर्यस्यपादस्थस्तथास्रस्तेचपिण्डिके। सीदतश्चाप्युभेजंघेतंभिषकपरिवर्जयेत् ॥ ११॥ जिस रोगीके पैरोंमें सूजन उत्पन्न हो जाय और दोनों पिण्डलिये शिथिल पड-. जायँ तथा दोनों जंघा हिल न सकें उस रोगाको वैद्य त्याग देवे ॥ ११ ॥ शूनहस्तंशूनपादशूनगुह्योदरंनरम् । हीनवर्णबलाहारमौषधैननॊपपादयेत् ॥ १२॥ · जिस रोगीके हाथपांव सूख जाय तथा गुह्यस्थान और उदरपर सूजन होजाय,. वर्ण और बल तथा आहार हीन होजाय उस रोगीकी औषधों द्वारा चिकित्सा नहीं करनी चाहिये क्योंकि वह अवश्य मरजानेवाला है ॥ १२ ॥ उरोयुक्तोबहुश्लेष्मानीलःपीतःसलोहितः। सततंच्यवतेयस्यदूरात्परिवर्जयेत् ॥ १३ ॥ " जिस पुराने रोगीकी छाती से नीलवर्ण और पीला तथा लालीयुक्त बहुतसा बलगम आताहो तो उस रोगीको दूरसेही त्याग देवे ॥ १३ ॥ . हृष्टरोमासान्द्रमूत्रःशूनःकासज्वरादितः। क्षीणमांसोंनरोदूराद्वज्योंवैयेनजानता ॥ १४ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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