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________________ चरकसंहिता-मा० टी०। दृष्टःप्रथमरात्रेयःस्वप्नःसोऽल्पफलोभवेत् । नस्वंपेद्यःपुनदृष्टाससद्यःस्यान्महाफलः॥४३॥ जो स्वप्न रात्रिके प्रथम प्रहरमें दिखाई देताहै वह अल्प फलको करनेवाला होताहै जिस स्वप्नको देखकर मनुष्यको फिर निद्रा न आवे वह स्वप्न महाफलको देनेवाला होताहै ॥ ४३ ॥ अकल्याणमपिस्वप्नदृष्टातत्रैवयःपुनः। पश्येत्सौम्यंशुभाकारंतस्यविद्याच्छुभंफलम् ॥४४॥ यदि प्रथम अशुभ स्वप्नको देखकर फिर उसी समय शुभ स्वप्न को देखे तो उसका शुभही फल होताहै ॥ ४४ ॥ तत्रश्लोकः। पूर्वरूपाण्यथस्वप्नान्यइमान्वेत्तिदारुणान् । नसमोहादसाध्येषुकर्माण्यारभतेभिषक् ॥ ४५ ॥ इति चरकसंहितायामिन्द्रियस्थाने पूर्वरूपीयमिंद्रियंसमाप्तम्॥५॥ जो वैद्य इन संपूर्ण पूर्वरूपोंको तथा इन दारुण स्वमीको भलेप्रकार जानताहै वह असाध्यरोगोंमें मोहके वश चिकित्सा करनेके लिये नहीं फंसता ॥ ४५ ॥ इति श्रीमहर्षचर० इन्द्रियस्थाने भाषा कायां पूर्वरूपायर्यामीद्रयं नाम पञ्चमोऽध्यायः॥५॥ षष्टोऽध्यायः। अथातः कतमानिशरीरीयामन्द्रियंव्याख्यास्याम इतिहस्माह भगवानात्रेयः। अब हम कतमानिशरीरीय इन्द्रियाध्यायकी व्याख्या करतेहैं इसप्रकार भगवाद आत्रेयजी कथन करनेलगे। कतमानिशरीराणिव्याधिमन्तिमहामुने।। यानिवैद्यःपरिहरेयेषुकर्मनसिध्यति ॥ १॥ अग्निवेश कहनेलगे कि हे महामुने !.कितने प्रकारको व्याधियोंवाले रोगियोंके शरीर ऐस होते हैं जिनको वैद्य त्याग देवे और जिनमें चिकित्सा कीडई सफल नहीं होती ॥१॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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