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________________ ( ८१८ ) चरकसंहिता - मा० टी० । स्यपुष्पन पूर्वजम् ॥ २ ॥ नत्वारिष्टस्यजातस्यनाशोऽस्तिमरणादृते । मरणञ्चापितन्नास्तियन्नारिष्टपुरःसरम् ॥ ३ ॥ यद्यपि इसप्रकारके भी बहुतसे फूल होते हैं जिनसे फलकी उत्पत्ति नहीं होती और ऐसे फल भी बहुत से हैं जिनके फूल नहीं होते परन्तु ऐसा कोई अरिष्ट नहीं होता जो मृत्युको उत्पन्न न करताहो और ऐसा मृत्यु भी नहीं होता जिससे पहिले अरिष्ट न होताहो ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ मिथ्यादृष्टमरिष्टाभमनरिष्टमजानता । अरिष्टञ्चाप्यसम्बुद्धमेतत्प्रज्ञापराधजम् ॥ ४ ॥ प्रायः बहुत स्थानों में अरिष्टके न जाननेवाले मनुष्य विनाही अरिष्टके लक्षणोंसे अरिष्ट मानलेते हैं। और बहुतसी जगह अरिष्टके लक्षण होतेहुए भी अपनी बुद्धिके दोषसे अरिष्टको नहीं समझते ॥ ४ ॥ ज्ञानसम्बोधनार्थन्तुलिङ्गैर्मरणपूर्वकैः । पुष्पितानुपदेक्ष्या मोन रान्बहुविधाञ्छृणु ॥ ५ ॥ ऐसे बुद्धिहीन वैद्योंकी बुद्धिको चैतन्य करनेके लिये मृत्युसे प्रथम होनेवाले अरणरूपापक पुष्पितनामक चिह्नोंको कथन करतेहैं उन अनेक प्रकारके लक्षणोंको श्रवण करो । ( निश्चय नियत मरणके बतलानेवाले लक्षणको अरिष्टं कहते हैं ) ॥५॥ पुष्पितके लक्षण | नानापुष्पोपमो गन्धोयस्यवातिदिवानिशम् । पुष्पितस्यवनस्येव नानाद्रुमलतायतः ॥६॥ तमाहुः पुष्पितंधीरानरंमरणलक्षणेः । .: सवैसंवत्सरा देहं जहातीतिविनिश्चयः ॥ ७ ॥ जिस शरीरमें अनेक प्रकार के पुष्पित बनके समान अनेक वृक्ष, लताके फूलोंके समान सुगंध दिनरात वराबर आनेलगे उस मनुष्यको बुद्धिमान् मनुष्य मरणके लक्षणोंसे पुष्पित समझे और वह मनुष्य एकवर्ष के अन्दर निश्चयही देहको त्याग कर देता है ॥ ६ ॥ ७ ॥ -पदं रिष्टम् तत् विकल स्यात् येन कालमृत्यु चिज्ञाचरणेरेि परं मृत्युर्भवति, तत्र रिठे जाते यद्युचिता किया क्रियते तदा मृत्युभवितुमहति तेन कालगतमेव रिष्टम्” इति तच्च न, अविशेषेण काला कालमरणेरिष्टपद्भावनियमात् अकालमूत्र च काल नृत्यौ च यदेव क्रिया थमतिकान्तोऽप्रचारजनितो व्याधिर्भवति, तदंत्र रं रिष्टं भवति, अतरवोतन् "क्षगेनैव रिष्टाः प्रादुर्भवन्तिदति यनं न स्त्रीकरोति, तस्य निवाचारजन्यावेता कदापि न स्यात् येन यथापचारजा दोषा अतिशमप्रमादादसाध्यध्याविजनका भवन्ति तथा मरणपूरिननका अपि भवन्ति । १ मरणख्यापक चिह्न |
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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