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________________ इन्द्रियस्थान-अ० १. (८१६. यदि रोगियोंका स्वर मेढेके समान अथवा जो समझा न जाय इसप्रकारका या गद्गद स्वर अथवा शान्त और हीनशब्द या फटाहुआ हो तो चैकारिकस्वर जानना। इसके सिवाय जो पहिले श्रवण न कियाहो इसप्रकारका अभूतपूर्व स्वर भी बैका. ईरेक होताहै। यह स्वरोंकी प्रकृति और विकृतिका वर्णन कियागया ॥ १७ ॥ __ आसन्नमृत्युरोगीका लक्षण । तत्रप्रतिवैकारिकाणांस्वराणामाश्वभिनिर्वृत्तिःस्वरानेकत्वमेकस्यचानेकत्वमप्रशस्तमितिस्वराधिकारः । इतिवर्णस्वराधिकारी यथावदुक्तौमुमूर्षतांज्ञानार्थमिति ॥ १८॥ रोगियोंके स्वरका एकाएकी वदलजाना और अनेक प्रकारका स्वर होना तथा अनेक प्रकारसे फटाहुआसा होजाना यह रोगियोंके अरिष्टका चिह्न है। इस प्रकार अरनवाले रोगियोंके स्वर और वर्णका उनके मृत्युज्ञानके लिये वर्णन किया गया ॥१८॥ तत्रश्लोकाः। यस्यवैकारिकोवर्णःशरीरउपजायते । अर्द्धवायदिवाकत्लेऽनिमित्तनचनास्तिसः ॥ १९ ॥ यहांपर श्लोक हैं-जिस मनुष्यके शरीरमें आधे संपूर्णमें वा एकाएकी वैचारिक वर्ण प्रगट होजाय वह मनुष्य अवश्य मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ १९ ॥ नीलंबायदिवाश्यावंतानवायदिवारुणम्। . मुखार्द्धमन्यथावर्णोमुखाईरिष्टमुच्यते ॥२०॥ . 'यदि रोगीके आधेमुखका वर्ण नीला,श्याम,ताम्रवर्ण या लालवर्ण होजाय और आधा अन्य वर्णका हो तो यह अरिष्टकारक लक्षण होतेहैं ॥ २०॥ स्नेहोमुखासुिव्यकोरौक्ष्यमर्द्धमुखंभृशम् । ग्लानिरःतथाहयोंमुखाबेंप्रेतलक्षणम् ॥ २१ ॥ आधा मुख चिकना हो अर्थात् तेलसे भिगाहुआसा प्रतीत होताहो तथा आधा मुख विलकुल रूक्ष हो तथा आधे चेहरेमें ग्लानि और आधेमें हर्ष प्रतीत होता हो वो • यह रोगीकी मृत्यु होने के लक्षण हैं ॥ २१॥ तिलकापिप्लवोव्यङ्गाराजयश्चपृथग्विधाः। आतुरस्याशुजायन्तेमुखेप्राणान्मुमुक्षतः ॥२२॥ जिस रोगीके मुखपर एकाएकी तिल पिप्लव (लहसुन), व्यंग, (झाई.)तथा
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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