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________________ इन्द्रियस्थान-अ० १. यांश्चापरानुपेक्षमाणोविद्यादनूकतोऽन्यथावापिनिर्दिश्यमानां. स्तज्ज्ञः ॥९॥ . इनके सिवाय और भी जो शरीरके वर्ण (रंग) होतेहैं वह सब इन ऊपर कहै. हुए. वों की न्यूनाधिक्यतासे और वर्णविशेषको जानलेना चाहिये । वर्णके जाननेवाले बुद्धिमान इसप्रकार उपदेश करतेहैं और यह शरीरके स्वाभाविक वर्ण हैं ॥ ९ ॥ वैकारिकवर्ण। नीलश्यामताम्रहरितशुक्लाश्चवर्णाःशरीरस्यवैकारिकाभवन्तिा यांश्चापरानुपेक्षमाणोविद्यात्प्रास्विकृतानभूत्वोत्पन्नानितिप्रकतिविकृतिवर्णाभवन्त्युक्ताःशरीरस्य ॥ १० ॥ | नील, श्याम,ताम्र,हरित और सफेद, यह शरीरके विकृति वर्ण हैं ।इनके सिवाय और भी जैसे कि नो वर्ण पहिले देखा न हो अथवा पहिलेसे दूसरे प्रकारका होजाय 'रटरको भी विकृतवर्ण कहतेहैं बुद्धिमानोंको पहिले शरीरको प्रकृतिवर्ण और विकृत वर्णकी परीक्षा करनी चाहिये । इसमकार शरीरके वर्णकी प्रकृति और विकृति वर्णन कीगईहै। १०॥ वर्णजन्यरष्टलक्षण । तत्रप्रकृतिवर्णोऽर्द्धशरीरेविकृतिवर्णोऽशरीरेद्वावपिवौँमा- . दाविभक्तौदृष्टायद्येवंसव्यदक्षिणविभागेनयद्येवंपूर्वपश्चिमविभागेन यद्यत्तराधरविभागेनयन्तहिविभागेनआतुरस्यारिपरिमतिविद्यात् ॥ ११ ॥ यदि प्रकृतिवर्णवाले मनुष्यके शरीरमें वामभाग अथवा दक्षिण भाग या आगे पीछे दोनों ओर या केवल पीछे तथा केवल आगे या किसी अंगमें स्वाभाविक और किसी अंगमें वैकारिक वर्ण दिखाई देवे तो उस रोगीको अरिष्ट लक्षण जानना ॥ ११॥ एवमेववर्णभेदोमुखेऽप्यन्यतोवर्तमानोमरणायभवति ॥ १२ ॥ यदि रोगीके मुखका वर्ण पाहिलेसे बिलकुल बदलजाय अथवा और प्रकार स्वार भाविक वर्ण एकदम पलटजाय तो यह मृत्युका चिह्न जानना ॥ १२ ॥ . वर्णभेदेनग्लानिहर्षरोक्ष्यस्नेहाव्याख्याताः ॥ १३ ॥ वर्णभेदसे. ग्लान, हर्ष, रूक्षता और स्नेह इनसबका निर्देश कियागयाहै॥१३॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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