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________________ (७८८) चरकसंहिता-भा० टो। मुदकश्चादौप्रवेश्यगोभ्यस्तृणोदकंमधुलाजांश्चप्रदायब्राह्मणेभ्योऽक्षतान्सुमनसोनान्दीमुखानिचफलानीष्टानिदत्त्वाउदक्पूर्वमासनस्थेयोऽभिवाद्यपुनराचम्यस्वस्तिवाचयेत्ततःपुण्याहशब्देनगोब्राह्मणमन्वावर्त्तमानाप्रविशेत्सूतिकागारम् । तत्रस्थाचप्रसवकालंप्रतीक्षेत ॥८॥ फिर नवम महीना प्रवेश होतेही उत्तम दिन,नक्षत्र चन्द्रमा और शुभ करण तथा मैत्र मुहूर्तमें शान्तिकर्म कर,गौ, ब्राह्मण,अग्नि और जलके भरेहुए कलशको पहिले प्रवेश कर गौओंको घास जल और शहद तथा धानकी खील दे । फिर ब्राह्मणोंको चावल और फूल देकर नान्दीमुखके योग्य उत्तम फलोंको देकर उत्तर या पूर्वमें मासनोंपर बिठाकर प्रणाम करे।और उनके चरणादि प्रक्षालनकर फिर आचमन करे तदनन्तर स्वस्तिवाचन और पुण्याहवाचनपूर्वक गौ ब्राह्मणोंको आगे कर सूतिका स्थानमें प्रवेश करे । फिर उसी स्थानमें रहतीहुई प्रसवकालकी प्रतीक्षा करे ॥८॥ प्रसवकालके चिह्न। तस्यास्तुखलुइमानिलिङ्गानिप्रजननकालमभितोभवन्तितद्य__.. थाक्लमोगात्राणांग्लानिराननस्यअक्षणोःशैथिल्यविमुक्तबंधन__त्वमिववक्षसःकुक्षेरवलंसनमधोगुरुत्ववंक्षणवस्तिकटिपार्श्व पृष्ठनिस्तोदोयोनेःप्रस्रवणमनन्नाभिलाषश्चति । ततोऽनन्तर. मावीनांप्रादुर्भावःप्रसेकश्चगोंदकस्य ॥ १॥ प्रसवकालके समय स्त्रीके ये लक्षण होते हैं । जैसे क्लम, अंगोंमें ग्लानि, मुख और नेत्रों की शिथिलता,वक्षस्थलके बन्धन खुलगयेसे प्रतीत होना,कुक्षिका नीचेकी ओर जाना, नीचेका भाग भारी प्रतीत होना, वस्ति, वंक्षण, कमर, पसवाडे और पीठमें चमकके साथ पीडा होना,योनिका स्त्राव होना,अन्नमें रुचि न होना, उसकें . अनन्तर जिस झिल्ली में गर्भ होताहै उस थेलीका दिखाई देना उससे गर्भका जल निकलने लगना ॥ ८१ ॥ ___. . प्रसववेदनामें कर्तव्यकर्म । आवीप्रादुर्भावेतुभूमौशयनंविदध्यान्मृद्वास्तरणोपपन्नंतध्या" सीनांतांततः समन्ततःपारवाय॑यथोक्तगुणाःस्त्रियः
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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