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________________ , शारीरस्थान-अ० ८. (७७९) यस्याःपुनरुष्णतीक्ष्णोपयोगारगर्भिण्यामहतिसंजातसारेगर्भपुं- .. ज्यदर्शनस्यादन्योवायोनिप्रस्तावः । तस्याग वृद्धिनप्राप्नोति । निःसृतत्वात्सकालान्तरमवतिष्ठतेऽतिमात्रंतमुपविष्टकमित्या चक्षतकेचित् ॥ ५५॥ . जव गर्भवती स्त्रीके उष्ण तक्षिण पदार्थोंके सेवनसें भातिकतु अथवा अन्य प्रकारसे योनिस्राव होजाय तो उसके होनेसे जातसार गर्भ भी 'अर्थात् चौथे मही. नेका गर्भ भी बढनेसे बंद होजाताहै और अपूर्ण रहताहै इसलिये वह बहुतकाल पेटमही रहताहै यदि यह बहुत रोजतक पेटमेंही रहे तो इस गर्भको कोई आचार्य. उपविष्टक कहतेहैं ॥ ५५ ॥ .. नागोदरगर्भके लक्षण । "उपवासवतकर्मपरायाःपुनःकदाहारायाःस्लेहद्वषिण्यावातप्रको • पनोक्तान्यासेवमानायागर्मोनवृद्धिप्राप्नोतिपरिशुष्कत्वात् । संचापिकालान्तरमवतिष्ठतेऽतिमात्रंस्पन्दनञ्चभवति । तन्तु नागोदरमित्याचक्षते ॥ ५६ ।। - उपवास, व्रत, कर्मपरायणं स्त्री जब रूक्ष आदि आहारको करतीहै और चिकनाई नहीं खाती और वायुके कुपित करनेवाले रूक्ष पदार्थोंको सेवन करती है तो कुपितहुआ वायु गर्भको वंढने नहीं देता तथा सुखा देताहै।वह सूखाहुआ गर्भ भी बहुतकालतक पेटमें स्थिर रहताहै और अधिक फडकताहै । इस गर्भको नागोदर कहतेहैं ॥१६॥ नायॊस्तयोरुभयोरपिचिकित्सितविशेषमुपदेक्ष्यामः ॥१७॥ अव नागोदर और उपविष्टक गर्भवाली स्त्रियोंकी चिकित्साको कथन करते: उक्तगर्भमें चिकित्सा । भौतिकजीवनीयवृहणीयमधुरवातहरसिद्धानांसार्षिषामुपयोगः । नागोदरेतुयोनिव्यापन्निर्दिष्टंपयसामामगर्भाणाश्चगर्भवृद्धिकराणाञ्चसम्भोजनमेतैरेवसिद्धैश्चघृतादिभिःसुबुभुक्षाया• मभीक्ष्णयानवाहनापमार्जनावजृम्भणैरुपपादनमिति ॥ ५८ ॥ उपविष्टक गर्भ होनेपर भौतिक अर्थात् गर्भ में पार्थिव आदि गुण बढानेवाले द्रव्य अथवा भूतहर लाक्षादि द्रव्य और जीवनीयगण तथा बृंहणीयगण, मधुरगण
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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