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________________ . शारीरस्थान-अ०८. . (७६७). • उत्तम पुत्रके लिये हवन विधि। ... ... . ततऋत्विक्प्रागुत्तरस्यादिशिअगारस्यप्राक्प्रवणमुदक्प्रवणंवा प्रदेशमभिसमीक्ष्यगोमयोदकाभ्यांस्थण्डिलमुपसंलिप्यप्रोक्ष्य 'चोदकेनवोदिमास्मिन्स्थापयेत् । तापश्चिमेनानाहतवस्त्रसञ्चये श्वेतार्षभवाप्यजिनउपविशेदाह्मणप्रयुक्तोराजन्यप्रयुक्तस्तुवैयाधेचर्मण्यानडुहेवावैश्यप्रयुक्तस्तुरौरवेवास्तेवा । तत्रोपविष्टः . पालाशीभिरैगुदीभिरौदुम्बरीभिर्माधूकीभिर्वा समिद्भिरग्निमुपसमाधायकुशैःपरिस्तीर्य्यपरिधिभिश्चपारधायलाजैःशुक्लाभिश्चगन्धवतीभिः सुमनोभिरूपकिरेत्। तत्रप्रणीतोदपात्रंपवित्रपूतपुपसंस्कृत्यसर्पिराज्यार्थयथोक्तवर्णानाजानेयादीन्समन्ततः स्थापयेत् ॥ १८॥ फिर ऋत्विज(यज्ञकरानेवाला पुरोहित )पूर्वकी दिशामें अथवा उत्तरकी दिशाम या घरसे जिप्त ओर जल पूर्व या उत्तरको ढलताहो उस स्थानमें गोवरस लीपकर वेदीको वनावे । उस वेदीको जलसे छिडकार ग्रहादिकोंको यथास्थान स्थापित करे । फिर उस स्त्रीको वेदीसे पश्चिमकी ओर शुद्ध बिछेहुए वस्त्रके ऊपर या सफेद वृषभके अजिनके ऊपर अथवा मृगछालापर बिठावे । ब्राह्मण हो तो इस विधिसे विठावे, क्षत्री होतो व्याघ्रके चर्मपर,वैश्य होय तो रुरु मृगके चर्मपर अथवा बकरके चर्मपर विठावे । फिर पलाश, इंगुदी, औदुम्बर महुआ आदिकी समिधोंसे अग्निको स्थापन करे और कुशकण्डी कर्म विधिस कुशाको विस्तीर्ण करे । फिर वेदीकी परिधि स्थापन होनेके अनन्तर सफेद धानको खील, सफेद सुगंधित फूलोंसे स्वस्तिवाचनपूर्वक वेदीको सुशोभित करे एवम् प्रणीता पात्र, उदकपात्र, पवित्रा, पवित्र घृतपात्र, तथा पुष्टी यज्ञविधिसे वरण आदि संपूर्ण सामग्रीको विधिवत् स्थापन करे ॥ १८ ॥ ततःपुत्रकामापश्चिमतोऽनिंदक्षिणतोब्राह्मणमुपवेश्यअन्वालभेतसहभायथेष्टंपुत्रमाशासाना । ततः तस्याआशासानाया ऋत्विक्प्रजापतिमभिनिर्दिश्ययोनौतस्याःकामपरिपूरणार्थको म्यामिाष्टनिपेद्विष्णुयोनिकल्पयस्वित्यन्वयाचतितश्चैवाज्ये
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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