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________________ ( ७४४) चरकसंहिता-भा० टी०। करना अथवा जिंसप्रकार सेवन करनेसे धातुएं साम्य रहें उसप्रकार साधन करना उचित है । तथा जिसके सेवनसे जो धातु अधिक होनेवाली हो उससे विपरीत व्यका सेवन करना और चेष्टा करना धातुओंको सात्म्य रखताहै ॥ ६ ॥ स्वस्थके धातुसाम्य रखनेका उपदेश । देशकालात्मगुणविपरतिानांहिकर्मणामाहारविकाराणाञ्चक्रमणोपयोगःसम्यक् । सर्वाभियोगोनुदीर्णानांसन्धारणमसन्धारणमुदीर्णानाञ्चगतिमतांसाहसानाञ्चवर्जनम् । स्वस्थवृत्तमेतावद्धातूनांसाम्यानुग्रहार्थमुपदिश्यते ॥ ७॥ देश, काल और आत्मगुणसे विपरीतकर्मीका तथा आहारसमूहोंका क्रमपूर्वक उपयोग करना अर्थात् शीतदेशमें गर्म वस्तुओंका उपयोग और उष्णदेशमें शीत वस्तुओंका उपयोग करना । इसीप्रकार शीतकालमें उष्णपदार्थोंका सेवन और उष्णकालमें शीतपदार्थोंका सेवन एवम् रूक्ष प्रकृतिको स्निग्ध द्रव्योंका सेवन करना और स्निग्धको रूक्षका सेवन करना इत्यादि कर्म तथा जो वेग आयेहुए हैं उनको धारण न करना और नहीं आयेहुए वेगोंको धारण करना,साहसीकोको छोडदेना यह सब स्वस्थ मनुष्योंकी धातुओंको सात्म्य रखने के लिये कथन कियगयेहैं ॥७॥ ___ धातुओंकी वृद्धि और ह्रासका कारण । . धातवःपुनःशारीराःसमानगुणैःसमानगुणभूयिष्ठैवापिआहारविहारैरत्यस्यमा वृद्धि प्राप्नुवन्तिह्रासन्तुविपरीतगुणैर्विपरीतगुणभूयिष्ठेप्यिाहारैश्यस्यमानैः ॥ ८॥ शरीरकी धातुएँ अपने समान गुणाले तथा समानगुणविशेषवाले आहारवि. हारोंके सेवनसे वृद्धिको प्राप्त होती हैं । और विपरीतगुणवाले तथा विपरीतप्रभाववाले आहार, विहारसे धातुएँ ह्रासको प्राप्त होती हैं ॥ ८ ॥ धातुओंके गुण । तोमेशरीरधातुगुणाःसंख्यासामर्थ्यरूपकरास्तद्यथागुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षमन्दतीक्ष्णस्थिरसरमृदुकठिनविशदपिच्छिलश्लक्ष्णखरसूक्ष्मस्थूलसान्द्रद्रवाः ॥९॥ उन शारीरिक धातुओंके गुण इसप्रकार हैं और वह संख्या, सामर्थ्य और रूपके विभागसे जानने चाहियोजैसे गुरु,लघु,शीत,उष्ण,स्निग्ध,रूक्ष,मंद, तीक्ष्ण, स्थिर,सर,मृदु, कठिन, विशद,पिच्छिल,श्लक्ष्ण,खर,सूक्ष्म,सान्द्र स्थूल और द्रव॥९॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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