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________________ शारीरस्थान-अ० ५. (७३९) वियोगः । सजीवापगमासप्राणानिराधःसभंगः सलोकस्वभावः ॥ ७॥ इस स्थानमें लोकशब्द संयोगकी अपेक्षा करताहै।सामान्यतासे छः धातुओंका समुदाय संपूर्ण लोक है।इस जगह लोकशब्दसे पुरुष और जगत् दोनोंका ग्रहण है। उस लोकके हेतु, उत्पत्ति, वृद्धि, उपप्लवं और वियोग यह सब होतेहैं । इसजगह हेतुशब्द उत्पत्तिमें कारण जानना|जन्मको उत्पत्ति कहतेहैं। वृद्धिशब्दसे बढना और पुष्ट होना जानना।उपप्लव शब्द दुःखकी प्राप्तिका वाचकहै । छ: धातुओंका पृथकर होजाना वियोग कहाजाताहै । वह वियोग नीवापगम, (जीवनत्याग) प्राणनिरोध, अंग, लोकस्वभाव, नामसे उच्चारण कियाजाताहै ॥ ७ ॥ वियोगका कथन । तस्यमूलंसर्वोपप्लवानाञ्चप्रवृत्तिनिवृत्तिरुपरमश्चप्रवृत्तिदुःखंनिवृत्तिःसुखमितियज्ज्ञानमुत्पद्यतेतत्सत्यम्। तस्यहेतुःसर्वलोक सामान्यज्ञानमेतत्प्रयोजनसामान्योपदेशस्येति ॥८॥ इस वियोगका मूल प्रवृत्तिही है। प्रवृति ही संपूर्ण दुःखोंका मूल है और निवृत्ति संपूर्ण सुखोंका मूल है। तब यह सिद्ध हुआ कि प्रवृत्ति दुःख और निवृत्ति सुख है। इसप्रकारका जो ज्ञान उत्पन्न होताहै वह सत्य है। इस सत्यज्ञानके उत्पन्न होनेका कारण संपूणजगत् और पुरुषकी समानताका ज्ञान होनाही है । सो समानतासे जगत और पुरुषको तुल्यताके वर्णनका प्रयोजन कथन कर दियाहै ॥ ८॥ अग्निवेशका प्रश्न । अथाग्निवेशउवाच । किंमूला भगवन् । प्रवृत्तिनिवृत्तीवाउपाय इति ॥९॥ यह सुनकर अग्निवेश कहनेलगे कि हे भगवन् ! प्रवृत्तिका क्या कारण है और निवृत्तिका क्या उपाय है।॥ ९॥ प्रवृत्ति के मूलका वर्णन । भगवानुवाच । मोहेच्छाद्वेषकर्ममूलाप्रवृत्तिस्तजाह्यहङ्कारसनसन्देहाभिसंनुवाश्यवपातविप्रत्ययाविशेषानुपायाः । तरुणमिवद्रुतमतिविपुल शाखास्तरवोऽभिभूयपुरुषमवतत्योत्तिष्ठन्ते यैरभिभूतोनसत्तामतिवर्तते ॥ १० ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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