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________________ शारीरस्थान - अ० ४. ( ७२७) जो मनुष्य शूरवीर हों, शुद्ध हों, अपवित्रतासे द्वेष करनेवाले हों, यजन करनेवाले si, moमें विहार करनेवाले हों, अनिन्दितकर्मा हों, उचित समयपर क्रोध और प्रसन्नता करनेवाले हों उनको वारुणशरीर कहते हैं ॥ ४९ ॥ कौबेरका लक्षण | स्थानमानोपभोगं परिवारसम्पन्नंसुखविहारं धर्मार्थकामनित्यंशुचिंव्यक्तकोपप्रसादकौबेरं विद्यात् ॥ ५० ॥ जो मनुष्य यथास्थानमें मान, और भोगको सेवन करनेवाले हों परिवारयुक्त हों, सुखपूर्वक बिहार करनेवाले हों, धर्म, अर्थ और कामसाधन में तत्पर हों, पवित्र हों," जिनका क्रोध और प्रसन्नता प्रगट हो उनको कौबेरशरीर जानना ॥ ५० ॥ गांधर्वका लक्षण | प्रिय नृत्यगीतवादित्रोल्लापकंश्लोकाख्यायिकेतिहासपुराणेषुकुशलंगन्धमाल्यानुलेपनवसन स्त्रीविहारकामनित्यमन सूयकंगान्धर्वविद्यात् ॥ ५१ ॥ जिन मनुष्यों को नाचना, गाना, बाजा बजाना और स्तुति करना यह सव प्यारा लगता हो, जो श्लोक, कहानियां, इतिहास और पुराणमें कुशल हों, गंध, माला, अनुलेपन, वस्त्र, स्त्री इनमें नित्य आसक्त रहतेहों, निन्दारहित हों उनको गांधर्वकाय कहतेहैं ॥ ५१ ॥ ब्राह्मकी उत्कृष्टता । इत्येवशुद्धस्य सत्त्वस्य सप्तविधभेदांशविद्यात्कल्याणांशत्वात्संयोगातुब्राह्ममत्यन्तशुद्धं व्यवस्येत् ॥ ५२ ॥ इसप्रकार सतोगुणप्रधान मनके सातभेदके अंशविशेषसे सातप्रकारके मनुष्योंका वर्णन किया है । उनमें कल्याणका अंश होने से यह सातों साविक मनुष्य कहेजाते. हैं । सतोगुणका अधिक संबंध होनेसे ब्राहृयशरीर सबसे उत्तम है ॥ ५२ ॥ आसुरके लक्षण । शूरंचण्डमसूयकमैश्वर्य्यवन्तमौदरिकरोद्रमननुक्रोश कमात्मपूजकमासुरविद्यात् ॥ ५३ ॥ शूर, चण्ड, साहसी, निंदक, ऐश्वर्यवान्, पेटपालक, उग्रस्वभाववाला, निर्दयीं और अपनेको पूजन करने तथा करानेवाला अर्थात् आत्मश्लाघी, आसुर मनुष्य जानना ॥ ५३ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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