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________________ (७२४) चरकसंहिता-मा० टी०। इसीप्रकार पिताके बीज दोषसे पितृज अवयवों में विकृति होती है ।जब पुरुषके वीजमें बीजभागके अवयव दूषित होजाते हैं तब दुगंधित, सडीहुई, अथवा मरीहुई संतान उत्पन्न होतीहै ॥ ३७॥ यदात्वस्यबीजेबीजभागावयवःपुरुषकराणाञ्चशरीरवीजमानानामेकदेशःप्रदोषमापचतेतदापुरुषाकातिभूयिष्ठमपुरुषतणपूलिकनामजनयतितांपुरुषव्यापदमाचक्षते ॥३८॥ जब मनुष्यके बीजमें पुरुषकारक शरीरके बीजभागके एकदेशको दोष द्वारेवे कर देतेहैं तब इस पुरुषके चिह्नरहित और वर्यिरहित पुरुषके आकारवाला तृणपू. लक नामकी संतान उत्पन्न होती है। इसप्रकार पुरुषके बीजावयवसे गर्भ में विकार. ' होनेका कथन कियागया । पुरुषके वीजका जो अंश दूषित होता है सन्तानके शरीरमें उसी २ भागमें विकृति होजाती है ॥ ३८॥ एतेनमातृजानांपितृजानाञ्चावयवानांविकृतिव्याख्यानेनसा. त्म्यजानारसजानांसत्त्वजानाचावयवानांविकृतियाख्याता ३९॥.. इस कथनसे माता और पिताके वीजमें होनेवाले विकार आदिकोंका वर्णन कियागया और सात्म्यन रसज तथा सत्खन विकृतियोंका भी निदेश किया. गया ॥ ३९ ॥ निर्विकारःपरस्त्वात्मासवभूतानांनिर्विशेषःसत्त्वशरीरयोस्तुविशेषाद्विशेषोपलब्धिः ॥ ४० ॥ परमात्मा निर्विकार है वह आत्मा सर्वभूतोंमें समानभावसे वर्तमान है । इसलिये उसमें किसी प्रकारकी विकृति नहीं होती। मन और शरीर सबके एक बराबर नहीं होते इसलिये उनमें दोषादिकोंकी उपलब्धि है ॥४०॥ तत्रत्रयस्तुशारीरदोषावातपित्तश्लेष्माणरतेशरीरंदूषयन्ति॥४१॥ द्वौपुनःसत्तदोषौरजस्तमश्चातौसत्त्वंदूषयतस्ताभ्याञ्चसत्त्वश रीराभ्यांदुष्टायांविरुतिरुपजायतेनोपजायतेचाप्रदुष्टाभ्याम् ४२ वात, पित्त और कफ यह तीनों शारीरिक दोपहैं । यह दोष शारीरिक होनेसे शरीरावयवोंको अथवा शरीरको दूषित करते हैं । रज और तम यह दो मनके दोष हैं । यह दोनों मनको दूषित करतेहैं । इसप्रकार शारीरिक और मानसिक भेदसे दो प्रकारके दोष होतेहैं। यह दोनों प्रकारके दोष दुष्ट होनेसे शरीर और मनको विकृत करदेतेहैं। और दुष्ट न हानेसे विकृत नहीं करते । तात्पर्य यह हुआ
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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