SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 778
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • ७२०) चरकसंहिता-भा० टी० श्यः न पधातकरास्त्विमे भावाः तयथासर्वसतिगुरूष्णतीक्ष्णदारुणाश्चचेष्टाइमांश्चान्यानुपदिशन्तिवृद्धाः । देवतारक्षोऽनुचरपरिरक्षणार्थनरक्तानिवासालिबिभृयात्रसदकराणि चाद्यान्नाभ्यवहरेन्नयानमधिराहेन्नमांसमश्नीयात्सर्वेन्द्रियप्रतिकलांश्चभावान्दूरतःपरिवर्जयेत् ॥ २१ ॥ वह गर्भवती जिनजिन पदार्थोंकी इच्छा करे उसको वही पदार्थ देने चाहिये । परन्तु जो द्रव्य गर्भको हानि पहुंचानेवाले हों वह नहीं देने चाहिये । गर्भको हान्नि पहुंचानवाले यह भाव हैं । जैसे अत्यन्तभारी, तीक्ष्ण और दारुण द्रव्योंका सेवन और उल्टीपुल्टी चेष्टा करना । इनके सिवाय और भी भावोंको गर्भके हानिकारक कथन कियाहै । जैसे देवता और राक्षस तथा उनके अनुचर भी गर्भमें हानि पहुं. चातेहैं । इसलिये वृद्धजनोंने कहा है कि गर्भवती स्त्रीको रक्तवस्त्र धारण नहीं करने चाहिये और मदकारक द्रव्योंका सेवन नहीं करना चाहिये तथा सवारी आदिमें चढना, अतिवेगसे चलना, मांस खाना, एवम् इन्द्रियों के प्रतिकूल संपूर्ण भावोंको दूरसेही त्याग देना चाहिये ॥ २१॥ यच्चान्यदपिकिञ्चिस्त्रियोविदुस्तीबायान्तुखलुप्रार्थनावांकाममहितमप्यस्यहितेनोपसहितदद्यात्प्रार्थनाविलयनार्थम् । प्रा. र्थनासन्धारणाद्धिवायुःकुपितोऽन्तःशरीरमनुचर मानस्यविनाशंवैरूप्यंवाकुर्यात् ॥ २२॥ ... यदि किसी अहितकारक द्रव्यके ऊपर स्त्रीकी बहुत इच्छा चलती हो तो उसको वह द्रव्य किसी हितकारी द्रव्यके संयोगसे जिसप्रकार वह हानि न करसके दें देना चाहिये। क्योंकि गर्भवती स्त्रीकी तीव्र इच्छाको रोकनेसे गर्भमें दोष उत्पन्न होताहै और वायु कुपित हाकर बिगाड देताहै ॥ २२ ॥ चौथे महीनेमें गर्भके लक्षण । चतुर्थेमासिस्थिरत्वमापद्यतेगर्भस्तस्मात्तदार्भिणीगुरुगात्रत्वमधिकमापद्यतेविशेषेण ॥ २३ ॥ चौथे महीने में वह गर्भ दृढ होजासहै इसलिये गर्भवती स्त्रीका विशेषरूपसे शरीर भी भारी होजाताहै ॥ २३ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy