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________________ शारीरस्थान - अ० ४. गर्भका जलात्मक अवयव । अवात्मकंरसोरसनंशैत्यंमादेवः स्नेहः क्लेदश्च ॥ १३ ॥ ( ७१७ ) रस, जिह्वा, शीतलता, मृदुता, चिकनाई और गीलापन यह सब जलके विकार होते ॥ १३ ॥ गर्भका पृथिव्यात्मक अवयव । पथिव्यात्मकोगन्धः घाणंगौरवस्थैय्यं मूर्त्तिश्च ॥ १४ ॥ गन्ध, घ्राणेन्द्रिय, भारीपन, स्थिरता और मूर्त्तता यह सब पृथिव्यात्मक विकार हैं ॥ १४ ॥ एवमंय लोकसम्मतःपुरुपः । यावन्तोहि लोके भावविशेषाःतावन्तः पुरुषेयावन्तः पुरुषेतावन्तोला केइतिबुधास्त्वेवं द्रष्टुमिच्छंति ॥ १५ ॥ इसप्रकार यावन्मात्र लोकसंमित पुरुष हैं और जितने भाव विशेष जिस जिस्स प्रकार जिस जिस महाभूतके पूर्व में होते हैं वह सव वाह्यजगत् में देखेजातें हैं । ज्ञानि योंने इस प्रकार पंचभौतिक विकारोंका दृश्य कथन किया है ॥ १५ ॥ एवमस्येन्द्रियाणिअङ्गावयवाश्च यौगपद्येनाभिनिर्वर्त्तन्ते अन्यत्र तेभ्यो भावेभ्योयेऽस्यजातस्योत्तरकालंजायन्तेतद्यथा, दन्ता. व्यञ्जनानिव्यक्तीभावः तथायुक्तानि चापराणिएषाप्रकृतिविकतिः पुनरतोऽन्यथा । संतिखलअस्मिन्गर्भेनित्याभावाःसंतिचा-नित्याः तस्ययएवाङ्गावयवाः संतिष्ठन्तेतएव स्त्रीलिङ्गं पुरुषलिङ्गनपुंसकलिङ्गवाबिभ्रति ॥ १६ ॥ इसप्रकार सम्पूर्ण इन्द्रियां और अंगावयव एकही कालमें उत्पन्न होजातेहैं परन्तु कुछ भाव इसप्रकार के होते हैं जो इसके जन्म लेनेके अनन्तर होते हैं। उन भावोंके सिवाय और सम्पूर्ण अंगावयव क्रमपूर्वक गर्भमेंही परिपूर्ण होजाते हैं । जो जन्म लेने उपरान्त भाव उत्पन्न होते हैं वह इसप्रकार हैं जैसे दांत, दाढी, मूंछ आदि। इनके सिवाय अन्य भी प्राकृतिकभाव उत्पन्न होते हैं । इससे विपरीत इन्द्रियहानि आदि विकृतभाव उत्पन्न होते हैं । गर्भके बहुतसे भाव नित्य होते हैं। बहुतसे अनित्य होते हैं। जिस अंगावयवोंसे स्त्रीके लक्षण पुरुषके लक्षण और नपुंसकके लक्षण दिखाई देते हैं । वह गर्भके भाव नित्य हैं और दांत आदि भाव अनित्य होते हैं ॥ १६ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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