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________________ 'शारीरस्थान - अ० २. '(६९१) कहते हैं इस प्रकार अपने कर्मदोष से यह आठ प्रकारके गर्भकी विकृतियोंसे उत्पन्न होनेवाले नपुंसक कजाते हैं ॥ १६ ॥ १७ ॥ १८ ॥ १९ ॥ गर्भस्यसद्योऽनुगतस्यकुक्षौत्रीपुंनपुंसामुदर स्थितानाम् । किंलक्षणंकारणमिष्यतेकिंसरूपतायेनचयात्यपत्यम् ॥ २० ॥ ( · प्रश्न ) तत्काल हुए गर्भके क्या लक्षण होते हैं गर्भमें कन्या है अथवा पुरुष है या नपुंसक है इनके पृथक २ जाननेके क्या लक्षण होते हैं । सब संतानोंका एकसा -स्वरूप न होनेमें क्या कारण है ॥ २० ॥ सद्योगर्भ के लक्षण | निष्ठीविका गौरवमङ्गसादस्तन्द्राप्रहर्षोहृदयव्यथाच । तृप्तिश्वबीजग्रहणञ्चयोन्यागर्भस्यसद्योऽनुगतस्यलिङ्गम् ॥२१॥ (उत्तर) सद्योगृहीतगर्भा के लक्षण ये हैं जैसे- मुखसे थूकका आना, शरीर भारी होना, जांघों का रहसा जाना, ग्लानि, तन्द्रा, अमहर्ष, हृदयमें व्यथा, विनाही भोजन तृप्ति, योनिका फड़कना यह सब योनिद्वारा बीज ग्रहण करनेके अर्थात् तत्काल गर्भ होने के लक्षण हैं ॥ २१ ॥ गर्भस्थ बालकादिका परिचय । ¿ सव्यांग चेष्टापुरुषार्थिनीस्त्री स्त्री स्वप्नपानाशनशीलचेष्टा । सव्यांगगर्भानच वृत्तगर्भा सव्यप्रदुग्धास्त्रियमेवसूते ॥ २२ ॥ पुत्रन्त्व-. तोलिङ्गविपर्ययेण व्यामिश्रलिङ्गाप्रकृतिंतृतीयाम् । गर्भोपपत्तौ तुमनः स्त्रियायं जन्तुंत्र जे तत्सदृशंप्रसूते ॥ २३ ॥ • " गर्भधारण होजानेके अनन्तर जो स्त्री वाम अंग से अधिक वर्ताव करे अथवा जिसका वाम अंग भारी हो जिसको पुरुषसंगकी इच्छा हो, निद्रा अधिक आतीहो खानेपीने की अधिक इच्छा हो, अधिक चेष्टा करती हो, जिसके वामभागमें गर्भके लक्षण हों और गर्भ लम्बासा प्रतीत होताहो, वामस्तनमें प्रथम दूधका संचार हो उस स्त्रीके गर्भ से कन्या उत्पन्न होती है । इससे विपरीत अर्थात् दहिना अंग भारी हो दाने स्तन में दूधकी प्रवृत्ति हो, दाहिनी ओर गर्भस्थत प्रतीत हो इत्यादि लक्षणोंसे पुत्रवाला गर्भ जानना चाहिये । जिस गर्भमें दोनों के लक्षण वराबर हों उसमें नपुंसक जानना चाहिये । गर्भाधान के समय स्त्रोका मन जैसे पुरुषमें होता है वैसी स्वरूपवाली संतान उत्पन्न होती है ॥ २२ ॥ २३ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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