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________________ चरकसंहिता-मा० टी०॥ योंको त्यागदेनाही परमसुखका अवलंबन है । जैसे कोषकार ( पट्टकीट रेशमका कीडा) अपने सूत्रसे बंधकर आपही प्राणोंको त्यागदेतीहै वैसेही मूर्ख मनुष्य भी अतिलोभ आदि उपाधिसे ग्रसित हो अपनेको आपही नष्टकर डालताहै। जो मनुष्य काम, लोभादिक विषयोंको अग्निके समान समझकर उनसे निवृत्त रहतेहैं अर्थात् विषयोंकी उपाधियोंमें नहीं फंसते वह रागद्वेषसे किसी काममें प्रवृत्त न होकर दुःखके संयोगसे बचे रहतेहैं ।। ९४ ॥ ९५ ॥ ९६ ॥ दुःखके हेतु ।। धीधुतिस्मृतिविभ्रंशःसम्माप्तिःकालकर्मणाम् । असात्म्यार्थागमश्चेतिज्ञातव्यादुःखहेतवः ॥९७ विषमाभिनिवेशोयोनित्यानित्येहिताहिते।ज्ञेयःसबुद्धिविभ्रंशः समंबुद्धिहिपश्यति ॥ ॥९८ ॥ विषयप्रवणचित्तंधतिभ्रंशानशक्यते । नियन्तुमहितादर्थावृतिहिनियमात्मिका ॥ ९९ ॥ तत्त्वज्ञानस्मृतिर्यस्यरजोमोहावतात्मनः । भ्रश्यतेसस्मृतिभ्रंशःस्मर्त्तव्यंहिस्मृतो स्थितम् ॥ १०॥ बुद्धि, धृति और स्मृति इनका नष्ट होना अयोग्य काल और अयोग्य कर्मोंका संयोग होना तथा असात्म्य पदार्थोंका संयोग होना यह सब दुःखके हेतु हैं । नित्य. और अनित्य,हित और आहित इनको उल्टी रीतिसे देखना अर्थात् हितको आहित जानना और अहितको हित जानना, नित्यको अनित्य, अनित्यको नित्य जानना इत्यादि सब बुद्धिका विभ्रंश कहाजाताहै । यथोचित रीतिपर जो पदार्थ जैसा हो उसको वैसाही जानना उसको सद्बुद्धि कहते हैं । विषयोंमें चित्तको लगाना अपः १ धीविभ्रंशम्-विषमाभिनिवेशोऽयथाभूतत्वेनाध्यवसानम्-नित्यत्वे-अनित्यामति, एवं हितेs. हितमहिते च हितमिति या बुद्धिः स जुद्धिभ्रंशः, अथ कथमयं बुद्धिविभ्रंशशब्देनोच्यत इत्याह"समं बुद्धिर्हि पश्यति" उचिता शुद्धः समं यथाभूतं यस्मात् पश्यति, नत्मादसमदर्शनं बुद्धिविभ्रश उचित एवेत्यर्थः ॥ ६॥ धृतिभ्रंशम्-विपयप्रवणं विपयेपु सङ्गतम्, नियन्तुमिति व्यावयितुं, धृतिहि नियमात्मकेति,. यस्मात् धृशिरकार्यप्रसक्तं मनो निवर्तयति स्वरूपेण, तस्मात् मनोनियम कत्तुंमशक्ता कृतिः स्वकर्मनष्टा भवतीत्यर्थः ।। ६१ ॥ स्मृतिभ्रंशम्-तत्त्वज्ञ:ने स्मृतिर्यस्य भ्रश्यते इति योजना, कर्तव्यं हि स्मृतौ स्थितम् इति स्मतव्येन सम्मतस्यार्थस्य स्मरणं प्रशस्तस्मृतिधर्मः, तत्र तत्त्वज्ञानस्य शिष्टानां स्मर्तव्येन त्मतव्यस्य यदस्मरणम्, तत् स्मृत्यपराधाद् भवतीत्यर्थः ।। ६२ ।।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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