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________________ (६१८) चरकसंहिता-भा० टी० ॥ इमानिखलुतावदिहकानिचित्प्रकरणानिमः। ज्ञानपूर्वकर्मणांसमारम्भप्रशंसन्तिकुशलाः ॥७८ ॥ यहाँपर हम इन और प्रकरणोंका कथन करते हैं। क्योंकि बुद्धिमान् सव कोंके आरम्भका ज्ञानपूर्वक करनेकी ही प्रशंसा करते हैं ॥ ७८ ॥ ज्ञात्वाहिकारणकरणकार्ययोनिकार्यकार्यफलानुबन्धदेशकालप्रवृत्त्युपायान्सम्यगभिनिर्वय॑मानःकार्याभिनिवृत्ताविष्टफ लानुबन्धककार्यमभिनिर्वतयत्यनतिमहताप्रयत्नेनकर्ता ॥७९॥ कारण, करण, कार्ययोनि, कार्य, कार्यफल, अनुबन्ध, देश, काल,प्रवृत्ति और उपाय इन सबको भले प्रकार जानकर,कार्यके करने में प्रवृत्त होनेसे इष्टफलकी प्राप्ति होती है और कर्ता थोडा ही यत्न करनेपर कार्यकी सिद्धिको प्राप्त होताहै ॥७९॥ . कारण। तत्रकारणंनामतयत्करोतिसएवहेतुःसकर्ता ॥ ८०॥ कार्यके करनेवालेको कारण कहते हैं। और उसीको हेतु तथा कर्ता भी कहते हैं। ८०॥ करण। करणंपुनस्तबदुपकरणायोपकल्पतेकर्तुःकार्याभिनिवृत्तप्रियतमानस्य ॥ ८१॥ कार्यसिद्धि का जिस उपकरणद्वारा कार्यको करे उसको करण कहते हैं।अर्थात् कर्ता जिस सामग्रीको लेकर कार्यसिद्धि में प्रवृत्त हो उस सामग्रीका नाम करण कार्ययोनि । कार्ययोनिस्तुसायाविक्रियमाणाकायंत्वमापद्यते ॥ ८२ ॥ जो पदार्थ विकृत होकर कार्यरूपमें परिणत होजाय उसको कार्ययोनि कहते कार्य । कार्यन्तुतद्यस्याभिनिवृत्तिमभिसन्धायप्रवर्ततेका ॥ ८३॥ . १ कारणशब्देनात्र स्वतन्त्रकारणं कर्तृलक्षणम् इति चक्रपाणिः । हैं। ८२॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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