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________________ . . -- - - · विमानस्थान-अ०८ (६१३१ वाक्यप्रशंसा। वाक्यप्रशंसानामयथाऽन्यूनमनधिकमर्थवदनपार्थकमाविरुद्धमविगतपदार्थश्चतद्वाक्यमननुयोज्यामितिप्रशस्यते ॥ ६१॥ जो न्यूनतारहित, अनधिक, अर्थवाला, अनपार्थक, अविरुद्ध, पदार्थके अर्थको यथार्थ कथन करनेवाला वाक्य हो उसको वाक्यप्रशंसा:अर्थात् प्रशंसनीय वाक्य कहते हैं ॥६१॥ वाक्छल। छलंनामपरिशठमर्थाभासमनर्थकंवाग्वस्तुमात्रमेवातद्विविधंवाक्छलंसामान्यछलञ्चा वाक्छलनामयथाकश्चिद्व्यात्नवतन्त्रोऽयंभिषगिति,भिषब्रयान्नाहनवतन्त्रएकतन्त्रोऽहमिति। परोयानाहंबचीसिनवतन्त्राणितवति, अथतुनवाल्यस्तंतेतन्त्रमिति, भिषक्यान्नमयानवाभ्यस्ततन्त्रमनेकशताभ्यस्तं मयातन्त्रामतिवाक्छलम् ॥ १२॥ 'किसी अर्थको शठतासे दूसरे रूपमें प्रकाश करके वादीके लक्ष्य विषयका दूसरी और अर्थ लेजाना छल कहाता है छल वाणीके फेर मात्रको कहते हैं । वह छल दो प्रकारका है । १ वाक् छल । २ सामान्य छल । वाक्छल जैसे-कोई कहे कि यह वैद्य नरंतंत्र है अर्थात् नवीन शास्त्रका जाननेवाला है इस जगह नवशब्दका अर्थ छलपूर्वक नौ संख्याका बाचक बनाकर कहे कि मैं नौ तंत्र नहीं केवल एकही तंत्र हूं अर्थात् नौ तंत्रों को नहीं जानता, एक ही तंत्रको जानता हूं । फिर पूर्वपक्षवाला कहे कि मैंने यह नहीं कहा कि आप नौ तंत्रोंको जानते हैं मैंने तो यही कहा है कि आपने नया शास्त्र पढा है अर्थात् आपने नवीन अभ्यास किया है उसपर वैद्य फिर कहे कि मैंने शास्त्रको नौवार अभ्यास नहीं किया किन्तु अनेक सौवार अभ्यास किया है इस प्रकार दूसरेके लक्ष्यको छलसे दूसरी ओर डाल देना वाक्छल कहाजाताहै ।६२॥ सामान्यछल ।' . . . सामान्यच्छलनामयथाव्याधिप्रशमनायोषधमित्युक्तेपरोवूयासत्सत्प्रशमनायेतिकिन्नुभवानाहसद्रोगः लदोषधयदिचस
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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