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________________ विमानस्थान - अ०८ अथ वाक्यदोषः । वाक्यदोषोनामयथाखल्वस्मिन्नर्थेन्यूनमधिकमनर्थकम पार्थक (६११-). विरुद्धञ्चेति ॥ ५५ ॥ जिस विषय में कथन करनेलगे उसमें न्यून, अधिक, अनर्थक, अपार्थक और विरुद्धताका कथन करना वाक्यदोष कहाता है छल हेत्वाभासादि सब वाक्यदोष: मेंही जानने ॥ ५५ ॥ वाक्यन्यूनता । अत्र हेतूदाहरणोपनयनिगमनानामन्यतमेनापिन्यूनन्यूनं भवतियद्वा बहूपदिष्टहेतुकमेकेनसाध्यतेहेतुनातच्चन्यूनम् एतानि ह्यन्तरेणप्रकृतोप्यर्थः प्रणश्येत् ॥ ५६ ॥ " उदाहरण, उपमा, निगमन इनमेंसे किसी एकका अभाव होना न्यून कहाता है। अथवा जिस विषयको बहुतसे हेतुओंसे पुष्ट करना उचित हो उसको अल्पहेतु द्वारा कथन करना न्यून कहाता है । न्यूनतासे अर्थका कथन करना प्रकृत अर्थको भी नष्ट करदेता है ॥ ५६ ॥ अथाधिक्यम् । आधिक्यंनामयदायुर्वेदे भाष्य माणे बार्हस्पत्यमौशन समन्यद्वाप्रतिसम्बद्धार्थमुच्यतेयद्वापुनः प्रतिसम्बद्धार्थमपिद्दिरभिधीयते, तत्पुनरुक्तत्वादधिकं तच्चपुनरुक्तंद्विविधमर्थपुनरुक्तंशब्दपुनरुक्तञ्च । तत्रार्थपुनरुक्तंनामयथा भेषज मौषधंसाधनमिति, शब्दपुनरुक्तञ्च भेषजं भेषजमिति ॥ ५७ ॥ . आयुर्वेद में संभाषण करते हुए वार्हस्पत्य तथा औशनस अथवा अन्य प्रासंगिक इधर उधरकी कथा कहानियोंको छेड देना तथा एक वाक्यको अनेक प्रकारसे कईचार उच्चारण करना अथवा एक वाक्यको दोहराकर कहना वाक्यकी अधिकता कही जाती है । उनमें एक बातको दोहराकर कहना पुनरुक्त कहाता है। उसके दो भेद हैं । १ अर्थसे पुनरुक्त । २ शब्दपुनरुक्त । जैसे- औषधको भेषज, औषध, साधन इन तीन नामोंसे उच्चारण करना यह अर्थपुनरुक्त कहा जाता है तथा भेषज भेषज बारबार कहना शब्दपुनरुक्त कहा जाता है ॥ ५७ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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