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________________ चरकसंहिता - भा० टी० 1 आयुर्वेद शास्त्रका पार नहीं है । इसलिये सदैव अप्रमत्त होकर इसमें चित्तं लगा योग्यता प्राप्त करे। और यह जानकर कि अमुकस्थलमें अमुकप्रकारसे रोग शान्ति करनाचाहिये इत्यादि वैद्यकशास्त्र के प्रकारों को अपने गुरुके सिवाय और योग्य वैद्योंसे भी सखितारहे तथा निंदा आदिको त्याग देवे । बुद्धिमान् मनुष्य के लिये सम्पूर्ण संसार ही शिक्षा देनेवाला गुरु है और मूखों के लिये शत्रु है। ऐसा विचारकर बुद्धिमान् मनुष्यको चाहिये कि शत्रुका कहाहुआ भी वाक्य सुनना यदि प्रशंसा के योग्य हो, हितकारी हो और यशको बढानेवाला हो तथा आयुवर्द्धक हो, तो उसको विचार कर मान लेना और उसके अनुकूल आचरण करना चाहिये ॥ ११ ॥ अतः परमिदंच्याद्देवताग्निद्विजातिगुरुवृद्धसिद्धाचार्येषुतेसम्यग्वर्त्तितव्यम् । तेषु सम्यग्वर्त्तमानस्यायमग्निः सर्वगन्धरसरत्नबीजानियथेरिताश्च देवताः शिवायस्युः अतोऽन्यथा चावर्त्तमानस्याशिवायेति । एवं ब्रुवतिचाचाय्र्य्येशिष्यस्तथेतिब्रूयात् । यथोपदेशञ्चकुर्वन्नध्याप्योज्ञेयअतोऽन्यथातुअनध्याप्यः अध्यायमध्यापयनहिआचार्य्योयथोक्तैश्चाध्यापन फलैयोगमा तेअन्यैश्वानुक्तैःश्रेयस्करैर्गुणैः शिष्यमात्मानञ्च युनक्ति । इति अध्यापनविधिरुक्तः ॥ १२ ॥ (५९४ ) : इसके अनन्तर आचार्य शिष्यसे यह और कहे कि देवता, आग्न, ब्राह्मण, गुरु, वृद्धजन सिद्ध और आचार्य इनसे सदैव भले प्रकार विनीतभावसे वर्ताव रखना । इन सबके साथ विनयपूर्वक उत्तम वर्ताव करने से यह सब तथा आने और सब प्रकारके गंध रस, रत्नादिक और देवता तथा वृद्ध, सिद्ध, आचार्य आदिक तेरे कल्याणको करेंगे | इसके विपरीत करनेसे तुम्हारा अमंगल होंगा । शिष्य यह सुनकर हाथ जोडकर कहे बहुत अच्छा महाराज ऐसा ही करूंगा तथा जैसे गुरुने उपदेश किया है उसीके अनुसार सम्पूर्ण कार्यों को करे। ऐसा शिष्य पढानेके योग्य है इससे विपरीत - पढानेके योग्य नहीं है । पढानेके योग्य शिष्यको पढाताहुआ आचार्य अध्यापन के संपूर्ण फलों को प्राप्त होता है । शिष्यको चाहिये कि इनके सिवाय अन्य भी जो हितकर कल्याणकारी गुण हों उनको ग्रहण करे । इसप्रकार अध्यापन विधिका कथन कियागया ॥ १२ ॥ 'सम्भाषणविधि | अध्ययनाध्यापनविधिवत्सम्भाषाविधिमतऊर्द्धव्याख्यास्यामः ।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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