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________________ विमानस्थान-अ०७ : (५७५) चार विधि हैं जैसे शिरोविरेचन, वमन, विरेचन और आस्थापन इसप्रकार हामयोंका अपकर्षण अर्थात् निकालनेकी विधिका कथन कियागया ॥ १४ ॥ प्रकृतिविघातस्त्वेषांकटतिक्तकषायक्षारोष्णानांद्व्याणामपयोगोयच्चान्यदापकिञ्चिच्लेष्मपुरीषप्रत्यनीकभूतंतत्स्यादिति प्रकृतिविघातः ॥१५॥ अव प्रकृतिविघातको कहतहैं कटु, विक्त, कषाय, क्षार तथा उष्ण द्रव्योंका उपयोग करना और इनके सिवाय अन्य भी जो द्रव्य कफ और मलके विरोधी हों अथवा शुद्ध करनेवाले हों उनका सेवन करना एवम् कृामियोंके उत्पन्न करनेवाले कारणोंको नष्ट करनेवाले द्रव्योंका सेवन करना कृमियोंका प्रकृतिविघात कहाजालाहै ॥ १५ ॥ अनन्तरंनिदानोक्तानांभावानामनुपसेवनयदुक्तंनिदानविधी तस्यवर्जनंतथाविधप्रायाणाश्चापरेषांद्रव्याणामितिलक्षणतश्चिकित्सितमनुव्याख्यातमेतदेवपुनर्विस्तरेणोपदेक्ष्यते ॥ १६ ॥ इसके अनन्तर निदानमें कहेहुए भावोंका अर्थात् कृमियोंके उत्पन्न करनेवाले पदार्थोंका सेवन नहीं करना और इनके उत्पन्न करनेवाले भावोंको त्याग देना निदानमें कथन कियेहुए भावोंके सिवाय और भी जो कृमियों के उत्पन्न करनेके कारण हों उनको त्याग देनाचाहिये । यह कृमियोंकी संक्षेपसे चिकित्सा कथन कीगईहै अव विस्तारसे कथन करतेहैं ॥ १६ ॥ पेटके कीडोंकी चिकित्सा।। अथैनंक्रिमिकोष्ठमातुरमप्रेषड्रा–सप्तरात्रंवानेहस्वेदाभ्यामुप'पायश्वोभूतेएनंसंशोधनंपायायतास्मीति,क्षीरदधिगुडतिलमत्स्यानपमांसपिष्टान्नपरमानकुमुम्भलेहसम्प्रयुक्तैर्भोज्यैःलायं प्रातरुपपादयेत्समुदीरणार्थञ्चैवक्रिमीणांकोष्ठाभिसरणार्थञ्च॥१७॥ भिषगथव्युष्टायांरजन्यांसुखोषितंसुप्रजीर्णभुक्तञ्चविज्ञायास्थापनवमनविरेचनैस्तदहरेवोपपादयेत् ॥ १८॥ जिस मनुष्यके कोष्ठमें कृमि हों उसको पाहिले छ: दिन या सात दिन निहन और स्वेदन करना चाहिया फिर स्नेहन स्वेदन करके जब देखे कि कल प्रातकाल सशाधन करावेंगे तो प्रथम दिन रात्रिके समय दूध, दही, गुड, तिल,मछली,अनू
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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