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________________ ___· विमानस्थान-अ०.३. (५३९) शयसमुत्थः,प्रायोभेषजानिचामाशयसमुत्थानांविकाराणांपाचनवमनापतर्पणानिशमनानिभवन्तिपाचनार्थञ्चपानीयमुष्णं,' तस्मादेतज्ज्वरितेभ्यःप्रयच्छन्तिभिषजोभूयिष्ठम् ॥ ५७ ॥ तब भगवान् आत्रेयजी अग्निवेशसे कहनेलगोक ज्वरवाले मनुष्य के शरीर,कारण, देश,काल इन सवको विचारकर आमदोषको पचानेके लिये वैद्यलोग गर्मजल पीनेको देते हैं। इसका कारण यह है कि ज्वर-आमाशयसे उत्पन्न होताहै और प्रायः आमाशयसे प्रगट होनेवाले रोगमात्रको पाचन, वमन, लंघन आदिकासे शान्त करते हैं।औरआमके पचानेके लिये गर्म जलका देना उत्तम मानाहै।इसलिये वैद्यलोग ज्वरवाले मनुष्यको अधिकतर गर्मभल ही पिलाते हैं ॥ ५७ ॥ उष्णजलके गुण । तझ्येषांपीतंबातमनुलोमयतिअग्निमुदर्यमुदीरयति । क्षिप्रं .. जरां गच्छतिश्लेष्माणञ्चपारशोषयतिस्वल्पमपिचपतितृष्णा.. प्रशमनायोपपद्यतेतथायुक्तमपिचैतन्नात्योत्सन्नपित्तेज्वरेसदा हभ्रमप्रलापातिसारेवाप्रदेयमुष्णनहिदाहभ्रमप्रलापातिसारा भूयोऽभिवद्धन्तेशीतेनोपशाम्यन्तीति ॥ ५८॥ . ___ ज्वरादित मनुष्योंको गर्मजल पिलानेसे उनके शररिमें वह जल-वायुको अनुः लोमन करताहै, भग्निको दीपन, शीघ्र पाचन होजाताहै, क.फको परिशोषण कर ताहै तथा थोडाही पीनेसे तृषा शान्त होजातीहै । परन्तु यह गर्मजल- इसप्रकार युक्ति सम्पन्न और गुणकारी होनेपर भी अत्यन्त वढेहुए पित्तके कोपबालेको तथा दाह, भ्रम और प्रलाप एवम् आतिसारयुक्त ज्वरोंमें देना उचित नहीं। क्योंकि एस ज्वरोंमें गरमजल देनेसे--दाह, भ्रम, प्रलाप, और अतिसार अधिक बढजातेहैं और शीतल क्रिया करनेसे तथा शीतल जल देनसे शान्तिको प्राप्त होते हैं ॥ ५८॥. भवतिचात्र । शीतनोष्णकतानरोगानशमयन्तिभिषग्विदः । येतुशीतकृतारोगास्तेषाञ्चोष्णंभिषगजितम् ॥ ५९॥ यहांपर कहाहै कि चिकित्साके जाननेवाले वैद्य गरमीके रोगोंको शीतलाया द्वारा और शीतसे उत्पन्न हुए रोगोंको उष्ण क्रिया द्वारा शान्त करते हैं ॥१९॥ . एवमितरेषामापव्याधीनांनिदानविपरीतमौषधंकार्यम् ॥६॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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