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________________ चरकसंहिता - भा० टी० । निवेशक प्रश्न | इतिश्रुत्वा जनपदोद्धंसने कारणानि आत्रेयस्यभगवतः पुनरपिभगवन्तमात्रेयमग्निवेशउवाच । अथखलु भगवन ! कुतोमूलमेषां वाय्वादीनां वैगुण्यमुत्पद्यतेयेनोपपन्नाजनपदमुद्धं सयन्तीति २२ ॥ इस प्रकार भगवान् आत्रेयजीके मुखसे जनपदोध्वंसन के कारणोंको सुनकर अग्निवेश फिर भगवान् आत्रेयजीसे पूछनेलगे कि हे भगवन् ! इस वायु आदिक चारों भावों के बिगड जानेका क्या कारण है ? जिससे यह चारो विगडकर जनपदका उध्वंसन करते हैं सो कृपाकर कथन कीजिये ॥ २२ ॥ ( ५२८ ) आत्रेयका उत्तर । . तमुवाच भगवानात्रेयः । सर्वेषामग्निवेश ! वाय्वादीनांयहैगण्यमुत्पद्यतेतस्य मूलमधर्मस्तन्मूलञ्चासत्कर्म पूर्वकृतम् । तयोयोनिः प्रज्ञापराध एव ॥ २३ ॥ यह सुनकर आत्रेय भगवान्जी कहनेलगे कि हे अग्निवेश ! इन वायु आदिक चारों भावोंके विकारी होनेका कारण अधर्म है । और उस अधर्मका कारण प्रथम बुरे कर्मों का करना है । वह बुरे कर्म बुद्धिके अपराधसे होते हैं ॥ २३ ॥ तद्यथा - यदा देशनगरनिगमजनपदप्रधानधर्ममुत्क्रम्य अधर्मेणप्रजांप्रवर्त्तयन्ति तदाश्रितोपाश्रिताः पौरजनपदाव्यवहारोपजीविनश्चतमधर्ममभिवर्द्धयन्ति ॥ २४ ॥ उसीको कथन करते हैं । जब देश, नगर निगम और जनपदके मालिक अर्थात् राजा आदि प्रधान पुरुष धर्मको उल्लंघनकर प्रजासे अधर्मका वर्ताव करते हैं तव उनके आश्रित और उपाश्रित अर्थात् मंत्री मुख्याध्यक्ष तथा अन्य अहलकार और ग्रामोंके नम्बरदार आदिक अथवा अन्य ऐसे पुरुष जो कि उन राजा आदिकों के यहां मुख्य माने जाते हों उनके आश्रयसे अपना आजीवन करनेवाले (खुशामदखोर) उस अधर्मको लेकर खूब फैला देते हैं अथवा यो कहिये कि, राजा आदिदेश केप्रधान पुरुष जब अपनी बुद्धिके अपराधसे थोडा बहुत भी अधर्म करने लगते हैं तो उनके आश्रय रहकर अपनी आजीविका चलानेवाले खुशामदखोर लोग उस अधर्मको खूब बढादेते हैं ॥ २४ ॥ ततः सोऽधर्मः प्रसभंधर्ममन्तर्धत्ते । ततस्तेऽन्तर्हितधर्माणोदेवताभिरपित्यज्यन्ते । तेषां तथान्तर्हितधर्माणामधर्मप्रधानाना
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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