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________________ (५२२) चरकसंहिता-मा० टी०। पांचालदेशमें द्विजवरोंसे शोभायमान काम्पिल्य राजधानीमें भगवान् पुनर्वस आत्रेयजी अपने शिष्यगणोंसे पारवृत हुए ग्रीष्मऋतुके अन्तमें गंगाके किनारे वनमें विचरते हुए अपने शिष्य अग्निवेशसे कहनेलगे ॥१॥ दृश्यन्तेहिखलुसौम्य ! नक्षत्रग्रहचन्द्रसूर्यानिलानलानांदिशाचप्रकृतिभूताऋतुवैकारिकाभावाअचिरादितोभूरपिचनयथावद्रसवीर्यविपाकप्रभावमोषधीनांप्रतिविधास्यति । तद्वियोगाचातंकप्रायतानियता। तस्मात्प्रागुद्धंसात्प्राक्चभूमेर्विरसीभावादुद्धरसौम्य ! भैषज्यानि,यावन्नोपहतरसवीर्याविपाकप्रभावाणि । वयंचैषांरसवीर्यविपाकप्रभावानुपदेक्ष्यामहा, येचास्माननुकांक्षन्ति, यांचवयमनुकांक्षामः॥२॥ हे सौम्य ! ऐसा दिखाई देताहै कि नक्षत्र, ग्रह, चन्द्रमी, सूर्य, पवन, अग्नि तथा दिशाओंके स्वभाव विकारको प्राप्त होगये हैं और ऋतुएं भी अपने स्वभावोंसे विपरीत प्रतीति होती हैं और पृथिवीके भी ऐसे लक्षण देख पडते हैं कि, यह भी औषधियोंके यथोचित रस, वीर्य, विपाक और प्रभावोंको नष्ट करडालेगी अर्थात अब पृथिषीमें जो औषधियें उत्पन्न होंगी वह अपने गुणोंको नहीं करेंगी । जब औषधियें अपने गुणोंको न करेंगी तो मनुष्यंभी नित्यम्प्रति रोगी होंगे और ऋतुआदिकोंके विकारसे रोग उत्पन्न हो देशको नष्ट करडालेंगे । इसलिये उद्धंसकारक रोग उत्पन्न होनेसे पहिले तथा पृथिवीका स्वभाव बिगडजानेसे पहिले ही हे सौम्य ! औषधियोंका संग्रह कर लो जबतक इन औषधियोंके रस,वर्यि, विपाक और प्रभाव नष्ट न हों उससे प्रथम ही इनको संग्रह कर लेना चाहिये जो मनुष्य हमारेपर विश्वास रख हमारे पास आवेंगे तथा जिनके हितके लिये हम इच्छा करते हैं उन सबको रस,वीर्य,विपाक,प्रभावयुक्त औषधियोंके उपयोग द्वारा आरोग्य रखसकेंगे ॥२॥ नहिसम्यगुद्धृतेषुभैषज्यषुसम्यग्विहितेषुसम्यग्विचारचारितेषु जनपदोद्धंसकराणांविकाराणांकिाश्चत्प्रतीकारगौरवम्भवति ॥३॥ भले प्रकार उखाडी हुई औषधियोंको उत्तम विधिसे बनाकर यथोचित विचारपूर्वक प्रयोग करनेसे देशके नष्ट करनेवाले रोग अपना जोर न पासकेंगे । यदि बिना विचारे और विना ही समय उखाडे तथा भले प्रकार संस्कार किये विना औषधियोंका प्रयोग किया जायगा तो वह जनपदोद्धंसनके समय विकारोंमें अपना कुछ भी गुण न दिखा सकेगी ॥३॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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