SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 564
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५०६ ) चरकसंहिता - भा०टी० । करनेके लिये, पाचन के लिये तथा क्लेदन और स्रंसन होनेसे इसका उचित रीतिपर प्रयोग किया जाता है । इसके अधिक सेवन करनेसे शरीर में ग्लानि, शिथिलता,दुर्बलता यह उत्पन्न होते हैं । ग्राम, नगर, प्रान्त तथा देशों में जो लोग लवणका अधिकसेवन करते हैं उनके शरीरमें ग्लानि, मांस और रुधिर में शिथिलता होती है तथा वह सामान्य क्लेशको भी सहन नहीं करसकते। जैसे वाह्वीक, सौराष्ट्र, सिन्ध, सौवीर देशों के रहनेवाले मनुष्य दूधके साथमें भी लवणको भक्षण करते हैं । जिन देशोंमें. अत्यन्त ऊषर भूमि है उनमें क्षारकी अधिकता होनेसे ओषधी, वीरुध, वनस्पती और वानस्पत्य इन चार प्रकारकी औषधियोंमेंसे कोई भी उत्पन्न नहीं होती। यदि कोई हो भी जाय तो उस पृथ्वीके लवणके वलसे उन औषधियोंका तेज माराजाताहै । इसलिये लवणका अधिक उपयोग नहीं करना चाहिये। जिन मनुष्योंको लवण सात्म्य है उनको भी अधिक सेवन करनेसे गंजापन, बालोंका सफेद होना, वालों का.. उखडना, शरीरमें छोटी उमर में सरवट पडना यह विकार होते हैं । इसलिये लवण. जितना रुचि आदिके लिये सेवन करना उचित हो उससे अधिक नहीं खाना चाहिये ॥ १४ ॥ सात्म्यके लक्षण | सात्म्यमपिहि क्रमेणोपनिवर्त्त्यमानमदोषमल्पदोषंवाभवति । सात्म्यंना मतद्यदात्मनिउपशेते । सात्म्यार्थीद्युपशयार्थः । तत् त्रिविधंप्रवरावर मध्यविभागेन, सप्तविधञ्चर सैकैकत्वेन सर्वरसोपयोगाच्च । तत्रसर्वरसंप्रवरमवर मेकरसंमध्यमन्तुप्रवरावरमध्यस्थम् । तत्रावरमध्याभ्यां सात्म्याभ्यां क्रमेणप्रवरमुपपादयेत्सात्म्यम् । सर्वरसमापिचद्रव्यंसात्म्यमुपपन्नं सर्वाणि आहार - विधिशेषायतनानिअभिसमीक्ष्यहितमेवानुरुध्यते ॥ १५ ॥ यदि किसी हानिकारक वस्तुके सेवनका अभ्यास होगया हो (जैसे अफीम शंखिया आदि) तो उसको धीरेधीरे क्रमपूर्वक छोडदेना चाहिये । ऐसा करनेसे अल्पदोष अथवा निर्दोष होजाता है । जो पदार्थ अपने शरीरको हितकारी हो उसको सात्म्य कहते हैं । सात्म्यका जो अर्थ है उपशयका भी वही अर्थ है । वह सात्म्य - उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ इन भेदोंसे तीन प्रकारका है । फिर वह मधुर आदि एकएक रसके योगसे तथा एकसाथ संपूर्ण रसोंके योग भेदसे सात प्रकारका होता है । उनमें सव रसोंका अभ्यास उत्तम होता है । एक रसका उपयोग कनिष्ठ माना जाता है : कनिष्ठ और उत्तमके मिलनेसे मध्यम सात्म्य होता है । उनमें कनिष्ठ और मध्यम
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy