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________________ । (५०४) चरकसंहिता भा० टी० । यच्चान्यदपि किञ्चिद्व्यमेवंवातपित्तकफेभ्यो गुणतो विपरीत तञ्चैताञ्जयत्यभ्यस्यमानम् ॥ ११ ॥ इसी प्रकार अन्य भी जो द्रव्य वात, पित्त, कफसे गुणोंमें विपरीत हो वह भी . विधिवत सेवन किये हुए इनको जीतलेतेहैं ॥ ११ ॥ अथ खलु, त्रीणि द्रव्याणि नात्युपयुञ्जीताधिकमन्येभ्यो द्रव्येभ्यःतद्यथा-पिप्पली क्षार लवणमिति पिप्पल्यो हि कटुकाः सद्योमधुरविपाका गुव्यों नात्यर्थम् । स्निग्धोष्णाः प्रक्लेदिन्यो भेषजाभिमंताश्च । ताः सद्यः शुभाशुभकारिण्यो भवन्त्यापातभद्राःप्रयोगसमसाद्गुण्यादोषसञ्चयानुबन्धाःस. ततमुपयुज्यमानाहिगुरुप्रक्लेदित्वात् श्लेष्माणमुत्क्लेशयन्ति । औष्ण्यात् पित्तम् । नच वातप्रशमनायोपकल्पन्ते अल्पस्ने: होष्णभावात् । योगवाहिन्यस्तु खलु भवन्तिातस्मात् पिप्प लीनात्युपयुञ्जीत ॥ १२ ॥ किसी योगमें भी और द्रव्योंसे इन तीन द्रव्योंको अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिये । जैसे पिपली, क्षार और लवण । क्योंकि पीपल चरपरी है और शीघ्र मधुरं विपाक होजातीहै, अत्यन्तं भारी नहीं है एवम् निग्ध, उष्ण, क्लेदकर्ता, तथा औषधियोंमें मुख्य है। सो वह पीपली प्रयोग करनेसे शीघ्र ही अपने शुभ और अशुभगुणोंकों करती है । किसीरोगमें देते ही हितकारक होजातीहै । इसका निरन्तर प्रयोग करनेसे दोषोंका संचय होताहै।क्योंकि यह भारी और क्लेदी होनेसे कफको उठाती है । गर्म होनेसे पित्तको प्रबल करतीहै । इसमें स्नेह और उष्णता अधिक न रहनेसे वायुको भी शान्त नहीं करती परन्तु किसी योगमें मिलाकर दीहुई योगवाही होनेसे उस योगके समान गुण करनेवाली अवश्य होतीहै । इसलिये पिप्पलीका अधिक और निरन्तर सेवन नहीं करना चाहिये ॥ १२ ॥. .. ... ... . क्षारसेवनका निषेध । क्षारः पुनरोष्ण्यतैक्षण्यलाघवोपपन्नः क्लेदयत्यादौ पश्चात् विशोधयति । स पचनदहनभेदनार्थमुपयुज्यते सोऽतिप्रयुज्यमानः केशाक्षिहृदयपुंस्त्वापघातकरः सम्पद्यते । ये ह्येनं . . .. .
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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