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________________ (४७०) चरकसंहिता-भा० टी०। इन कारणोंसे अथवा गिरपडनेसे, चोट आदि लगनेसे,विषम या अत्यन्त व्यायाम करनेसे एवम् अपनी शक्तिसे बढकर काम करनेसे, मनुष्यकी, छाती(फुप्फुस हृदय आदिमें ) घाव अथवा क्षीणता उत्पन्न होजातीहै तब वायु कुपित होकर उस मनुज्यके शरीरमें उरक्षतरोगको उत्पन्न करताहै । फिर वही वायु उर अर्थात् छातीमें स्थित होकर छातीके कफको ग्रहण करके शोषरोगको प्रगट करताहै।और ऊपर,नीचे तथा तिरछा गमन करताहुआ शरीरकी धातुओंको सुखा डालताहै ॥ २ ॥ वायुके कर्म। योऽशस्तस्यशरीरसन्धीनआविशतितेनजृम्भाङ्गमर्दोज्वरश्चोपजायते । यस्त्वामाशयमुपैतितेनरोगाभवन्तिउरस्याअरोचकश्च । यःकण्ठंप्रपंद्यतेकण्ठस्वनमुद्धंसतेस्वरश्वावसीदतियःप्राणवहानिस्रोतांस्येतितेन श्वासःप्रतिश्यायश्चोपजायते।यःशिरस्यवतिष्ठतेशिरस्तेनोपहन्यते ॥ ३॥ उसी वायुके जो अंश शरीरकी संधियोंमें प्रवेश करतेहैं वह जंभाई, अंगमर्द और ज्वर इनको उत्पन्न करतेहैं। जो अंश आमाशयमें प्राप्त होताहै वह छातीके रोगोंकों तथा अरुचिको प्रगट कहताहै जो अंश कण्ठमें प्रवेश करताहै वह कण्ठके शब्दको तथा स्वरको बिगाड देता है । जो अंश प्राणवाहक स्रोतोंमें प्रवेश करताहै उससे श्वास और प्रतिश्यायको उत्पन्न करता है । जो अंश शिरमें प्रवेश करताहै उससे शिरमें दर्द उत्पन्न होतीहै ॥ ३ ॥ ततःक्षणनाच्चैवोरसोविषमगतित्वाचवायोःकण्ठस्योद्धंसनात् कासःसंजायतो कासप्रसङ्गादुरसिक्षतेसशोणितंष्ठवितिशाोण- . तागमाचास्यदौर्गन्ध्यमुपजायतेएवमेतेसाहसप्रभवाःसाहसिकमुपद्रवाःस्पृशन्ति ॥४॥ इसके अनन्तर छातीके क्षरण होनेसे तथा वायुकी विषमगति होनेसे एवम् वायुः द्वारा कण्ठके रुकजानसे खांसी उत्पन्न होजातीहै उस खांसीके सबबसे छातीके घावोंका रक्त थूकमें आनेलगजाताहै । उस रक्तके निकलनेसे मुखसे दुर्गंध आने लगजातीहै । इस प्रकार यह साहससे उत्पन्न हुए उपद्रव अधिक साहस करनेवाले मनुष्यको घेर लेतेहैं ॥४॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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